ख़ुद को ही न समझ पाई
लोग दूसरों को नहीं समझते।
मैं ख़ुद को ही न समझ पाई।।
जब भी अकेली होती हूँ।
ख्यालों में डूब जाती हूँ।।
तलाशती हूँ मैं अपनी खुशी।
पर ढूंढ न पाऊं वह मैं ख़ुशी ।।
जब भी लगता मंजिल यह मेरी।
तन्हाई भी संग मेरे।।
पर बेडियों ने जकड़ रखा।
न पैर मेरे उस ओर उठे ।।
आखिर में आह मैं भरती हूँ।
ख़ुद की तलाश में भटकती हूँ।।
-कुसुम ठाकुर -
12 comments:
bahut accha likha aapne. regular likhte rahen to aur bhi accha.
धन्यवाद सुमनजी.
कुसुम जी की संवेदना सिर्फ उनकी अपनी ही नहीं, बल्कि दुनिया में अनगिनत इन्सान की संवेदना वयक्त होती है, इनकी कविता में,
पर बेडियों ने जकड़ रखा।
मेरे पैर क्यों कर उठे।
सब कुछ यहीं आकर फंस जाता है, इन्सान अपनी इच्छा को, अपने मन के अवयक्त भाव को दवा कर घुट-घुट कर जीता है न मरता है, भावना की आग में न जलता है न उसकी तपन से दूर रहता है,
संवेदना भरी इस छोटी सी कविता लाखो -करोडों की प्रतिनिधित्व करती है,
अरुण कुमार झा
अंत मे आह मैं भरती हूँ।
ख़ुद की तलाश में भटकती हूँ।।
--वाह!! बहुत उम्दा!! अच्छा लगा पढ़कर. नियमित लिखें.
लोग दूसरों को नहीं समझते।
मैं ख़ुद को ही न समझ पाई।।
खूबसूरत भाव कुसुम जी।
भाव बहुत सुन्दर लगे रचना में एहसास।
जानेगा खुद को वही खुद की करे तलाश।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत बढिया लिखा है .. बधाई !!
बहुत अच्छी और मनोहारी रचना है
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bahut hi sundar rachana bilkul sachi sachi bhaw.......achchha laga
Jo khud ko nahee samjhe
Dusre ko kya samjhenge
Jo khyalon me dub jate hain
Pani me kyon na doobenge
Khushee hijab khushee talasti hai
Talas kuchh nahee pati hai
Manjil jab nikat aati hai
Khushee se Kadam bhi thithak jate hani
Berion ko katne
Man ke talhatiyon me
Jab maine apne ko khoja
Apne ko vaheen dubka hua paya.
दिल को छू गयी आपकी कविता.
{ Treasurer-T & S }
प्रतिक्रया के लिए सभी साथी का आभार.
I request the author to remove my comments though it was not aimed in anyway it might be taken by anyone,when I wrote
"Berion ko katne
Man ke talhatiyon me
Jab maine apne ko khoja
Apne ko vaheen dubka hua paya," I was simply espounding verses of Geeta 4:42 that Atma is subtler than intellect, mind and body and as per XIII: 17 Atma is seated in every person's heart knowing which is the Ultimate truth.
At the outset if any of my writing has hurt her or anybody I seek apology but let me repeat again that my comment have nothing abusurd, obscene or disrespect to author or anybody except a poetic comment in reply as in gajal tradition, on a poetry when read with the poetry in question will be clear to anybody.
I saw many comments in appreciation of writing and though critical mine too was not in negation.
The author may remove may comments.
dhanakarthakur@rediffmail.com
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