"बेटियाँ"
जीवन में थी एक तमन्ना ,
वह हुई आज पूरी।
जब भी देखती बेटियाँ ,
सोचती हरदम।
जीवन की यह कमी ,
क्या होगी कभी पूरी ?
मेरे घर भी आएगी ,
कोई रूठने वाली ।
नाजों नखरों और फरमाइशें,
करूँगी मैं उसकी पूरी।
विदा करूँ मैं उसे पिया घर ,
ख़ुद हाथों से श्रृंगार कर।
सूने घर को फ़िर निहार ,
बाट तकुँ मैं हर त्यौहार पर ।
दिन बीता साल बीते ,
और आया ऐसा दिन ।
मुझे मिली नाजों नखरों ,
और फरमाइशें करने वाली।
विदा भी न करना पड़ा ,
और न ताकूँ बाट।
-कुसुम-
6 comments:
दीदी यह भगवती का आप के घर कब आगमन हुआ ,हमे तो कोई खबर ही नहीं
हृदय की सच्चाई
कविता में उतर आई
सुन्दर भावाभिव्यक्ति। आपकी निम्न पंक्तियाँ मन को छू गयीं-
विदा करूँ मैं उसे पिया घर ,
ख़ुद हाथों से श्रृंगार कर।
कुछ दिन पहले मैंने एक शेर कहा था कि-
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
are wah
kya aapki ye rachan hai
sach much me aapne bahut achchi likhi hai kabile tarif hai
are wah
kya aapki ye rachan hai
sach much me aapne bahut achchi likhi hai kabile tarif hai
भावभीनी सुन्दर रचना के लिये बधाई..
मगर... बेटी तो है धन ही पराया... पास अपने कब कोई रख पाया... भारी करना ना अपना जिया.... खुशी खुशी कर दो बिदा... कि रानी बेटी राज करेगी...
आप सभी स्नेही जनों का आभार ।
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