जीवन तो है क्षण भंगुर

"जीवन तो है क्षण भंगुर"

बिछड़ कर ही समझ आता,
क्या है मोल साथी का ।

जब तक साथ रहे उसका,
क्यों अनमोल न उसे समझें ।

अच्छाइयाँ अगर धर्म है,
क्यों गल्तियों पर उठे उँगली ।

सराहने मे अहँ आड़े,
अनिच्छा क्यों सुझाएँ हम ।

ज्यों अहँ को गहन न होने दें,
तो परिलक्षित होवे क्यों ।

क्यों साथी के हर एक इच्छा,
को मृदुल-इच्छा न समझे हम ।

सामंजस्य की कमी जो नहीं,
कटुता का स्थान भी न हो ।

कहने को नेह बहुत,
तो फ़िर क्यों न वारे हम ।

खुशियों को सहेजें तो,
आपस का नेह अक्षुण क्यों न हो ।

दुःख भी तो रहे न सदा,
आपस में न बाटें क्यों ।

जो समर्पण को लगा लें गले,
क्यों अधिकार न त्यागे हम ।

यह जीवन तो है क्षण भंगुर,
विषादों तले गँवाएँ क्यों ।।

-कुसुम ठाकुर - 




साथ रंग न छूटे


"साथ रंग न छूटे"

रंगों की बहार 
प्रेम की फुहार 
फागुन की बयार 
होली का त्यौहार 

छोड़ो मन के द्वेष 
लगो एक ही भेष 
फिर काहे का क्लेश
छोड़ो कल पर शेष

साथ रंग न छूटे
और न छूटे अपने 
सपने भी रंग लाए
जीवन में अपने 

जीवन का हर गीत 
सजे तुम्ही से मीत 
न छोड़ूँ मैं रीत 
कहूँ किसे यह जीत

-कुसुम ठाकुर-     
  

मेरा साथी


"मेरा साथी"

 मुझे मिला एक साथी
जिस पर थी न्योछावर
रात दिन मैं उसकी
सपनों मे रहती थी डूबी
एक तो वो विद्वान
और मैं अनपढ़ नादान
दूजे मैं ऐसी प्रतिभा
न देखी फिर
सुनी तो फिर भी कभी कभी
पर जब तक उसके मोल को
मैं समझ और सहेज पाती
वह देकर धोखा मुझे
चला गया किसी और देश
जहाँ से न कोई लौटा है
और ख़बर ही भेजा है ।

 -कुसुम ठाकुर -