"मुझे आज मेरा वतन याद आया"
मुझे आज मेरा वतन याद आया ।
ख्यालों में वह तो सदा से रहा है ,
मजबूरियों ने जकड़ यूँ रखा कि ।
मुड़कर भी देखूँ तो गिर न पडूँ मैं ,
यही डर मुझे सदा काट खाए ।
मुझे आज ......................... ।
छोड़ी तो थी मैं चकाचौंध को देख ,
निकल न सकूँ यह मजबूरी अब तो ।
करुँ क्या मैं अब तो मझधार में हूँ ,
इधर भी है खाई उधर मौत का डर ।
मुझे आज ............................... ।
बचाई तो थी टहनियों के लिए मैं ,
मगर जोड़ना कफ़न के लिए भी ।
गज भर जमीं बस मिले वहीँ पर ,
पर वह मुमकिन अब तो नहीं है ।
मुझे आज ...........................।
साँसों में भी तो सदा से रहा है ,
मगर बंद आँखें, हों उस जमीं पर।
इतनी कृपा तू करना ऐ भगवन ,
देना जनम फ़िर मुझे उस जमीं पर ।
मुझे आज ............................।
- कुसुम ठाकुर -
5 comments:
bahut hi sundar deshprem ka jazba.
waah bahut umda rachna...pyaar chalaka diya apna desh ki khatir...
छोड़ी तो थी मैं चकाचौंध को देख ,
निकल न सकूँ यह मजबूरी अब तो ।
अंतर्द्वन्दों के बीच वतन की याद
बहुत सुन्दर
छोड़ी तो थी मैं चकाचौंध को देख ,
निकल न सकूँ यह मजबूरी अब तो ।
अंतर्द्वन्दों के बीच वतन की याद
बहुत सुन्दर
वतन से दूर वतन की याद में सिसकने वाले लोग ...
और वतन में रहकर वतन की मिटटी करते लोग ...
दुर्भाग्य है इस वतन का ...
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