मुझे मेरा बचपन लौटा दो

" मुझे मेरा बचपन लौटा दो "

मुझे मेरा बचपन लौटा दो ,
कदम्ब तो नहीं झूले पर झुला दो ।

याद नहीं माँ की थपकी ,
और न मधुमय तुतलाना ।
स्मरण नहीं वे लम्हें अब तो ,
उन लम्हों को शाश्वत ही बना दो ।
मुझे मेरा ...................... ।

परीकथा की परी समझ ख़ुद ,
आते होठों पर मुस्कान ।
मेरे मन के निश्चल भावों को ,
पल भर को ही पंख लगा दो ।
मुझे मेरा ................... ।

अभिमानी अंचल मे भर दो ,
विपुल भावनाओं का हार ।
भोलापन यदि हो ना सम्भव ,
चंचलता थोड़ा ही सिखा दो ।
मुझे मेरा .................... ।

-कुसुम ठाकुर -

18 comments:

अजय कुमार said...

अच्छी रचना ,आखिर कौन नही चाहेगा कि उसका बचपन लौट आये

rashmi ravija said...

अच्छा लिखा है,
...दिल की पुकार हो जैसे...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सुन्दर भाव पिरोये है, बढ़िया !

Unknown said...

कितना प्यारा होता है बचपन ...................बचपन की कुछ यादें आपने काव्य के माध्यम से दिया अच्छा लगा ।

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

वाकई में सबकी यही चाह होती है मुझे मेरा बचपन लौटा दो......

Prabhakar said...

bahut khub. jawab nahi iska.........apne toh phir se bachpan ki lalsa jaga dee.

Mithilesh dubey said...

बेहद उम्दा रचना । आपने तो जैसे बचपन के प्रति लालायीत कर दिया ।

Tulsibhai said...

" bachapan ke khazane ko acchi tarha se kagaz per kaid kiya hai aapne aapko hamari aur se bahut bahut badhai "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

vandana gupta said...

bahut hi sundar kavita.........bachpan mein le jati hai aur bachpan ke har lamhe ko jivant kar deti hai.........badhayi

श्यामल सुमन said...

बचपन की यादें भली उसे करे सब प्यार।
रचना में उस भाव सुन्दर है उद्गार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Kusum Thakur said...

"स्नेह देखकर आप का रह गयी मैं तो दंग,
मेरे भाव सुन्दर लगे यह आप सबका उद्गार . "

नीरज गोस्वामी said...

मेरे मन के निश्चल भावों को ,
पल भर को ही पंख लगा दो

वाह कुसुम जी वाह...अनुपम रचना...अभूत सुन्दर शब्द और उतने ही मासूम सुन्दर भाव...
नीरज

मनोज कुमार said...

अभिमानी अंचल मे भर दो ,
विपुल भावनाओं का हार ।
भोलापन यदि हो ना सम्भव ,
चंचलता थोड़ा ही सिखा दो ।
वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर! किन्तु वह हमारा बचपन था, आज का तो बहुत कठिन है।
घुघूती बासूती

दिगम्बर नासवा said...

भोलापन यदि हो ना सम्भव ,
चंचलता थोड़ा ही सिखा दो ...

BACHPAN MEIN LOUT JAANE KI ICHHAA TO SABHI KE MAN MEIN HOTI HAI ... PAR HAR KOI AAP JAISA SUNDAR BAYAAN NAHI KAR SAKTA .... BAHUT SUNDAR LIKHA HAI ...

Udan Tashtari said...

क्या बात है..गजब!!

करण समस्तीपुरी said...

निश्छल, चंचल, कोमल..... मनभावन रचना ! बिलकुल बचपन की तरह !

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

mujhe mera bachpan lota do achchi rachana hai kintu kiya yah sambhav hota hai?