मुझे अपने बचपन की बहुत कम बातें ही याद , पर कुछ बातें जिसे माँ बराबर दुहराती रहती थी और हमेशा सबको बताती थी, वह मानस पटल पर इस तरह बैठ गए हैं कि अब शायद ही भूल पाऊँ । उनमें कुछ हैं मेरे और मेरे भाई के बीच का प्रेम।
मेरे बाबूजी उस समय भूटान में थे , मैं और मेरा भाई दोनों ही बहुत छोटे थे । उन दिनों मैं और मेरा भाई जिसे प्यार से हम बौआ कहते हैं और मुझसे १५ महीना छोटा है माँ के साथ दादी बाबा के पास रहते थे । हम दोनों भाई बहनों में बहुत ही प्यार था । बौआ तो फ़िर भी कभी कभी मुझे चिढा देता या मार भी देता था पर मैं उसे बहुत मानती थी । कभी कभी तंग करता तो उसे धमकी देती कि "मैं बाबुजी के पास चली जाऊँगी "। बौआ को यह अच्छा नही लगता था।
मुझे यह तो याद नहीं है कि उस दिन हुआ क्या था पर यह अच्छी तरह से याद है कि बौआ ने मुझे किसी बात को लेकर चिढाया और मैं बहुत रोई । उस दिन भी मैं और दिनों की भाँति उसे धमकी दी कि मैं बाबुजी के पास चली जाऊँगीपर वह न माना ।हम दोनों बाहर में खेल रहे थे, बस क्या था मैं वहीं से रोते हुए यह कह कर चल पड़ी कि मैं बाबुजी के के पास जा रही हूँ । बौआ को इसकी उम्मीद न थी कि मैं सच चल पडूँगी और मुझे जाता देख वह भी मेरे पीछे पीछे बढ़ने लगा। आगे आगे मैं रोती हुई जा रही थी, पीछे -पीछे बौआ "दीदी मत जाओ , बीच बीच में कहता " मेरी दीदी भागी जा रही है "। इस तरह से हम दोनों भाई बहन रोते हुए सड़क के किनारे तक पहुँच रुक गए । वहाँ एक बड़ा सा आम का बागीचा था और उस जगह पता नही क्यों मुझे बहुत डर लगता था , अतः उसके आगे न बढ़ पाई और वहीँ से रो रो कर बाबूजी को पुकारने लगी । मैं रो रो कर कहती "बाबुजी आप जल्दि आ जाईये बौआ मुझे चिढाता है "। मैं जितनी बार यह कहती बौआ भी रोते हुए कहता "दीदी मत जाओ अब मैं तुमको कभी नहीं मरुंगा न चिढाऊँगा घर चलो "। हम दोनों का इस तरह से रोना और मनाना उस रास्ते से जाता हुआ हर व्यक्ति देख रहा था और सब ने मानाने की कोशिश भी की पर हम न माने । अंत में सड़क पर भीड़ जमा हो गयी और उन्ही लोगों में से किसी ने जाकर बाबा दादी को हमारे बारे में बताया और दादी आकार हमें ले गयीं । घर जाने के बाद जब माँ हमसे पूछीं कि क्या हुआ तो मैं कुछ न बोली चुप रह गयी, अंत में बौआ से जब माँ ने पूछा तो वह सारी कहानी बता दिया ।
क्रमशः ............
8 comments:
संस्मरण की कड़ी को संजो कर अद्भुत माला गुन्थ्ने का आपका प्रयास सराहनीय है.
जारी रहें
शुभकामना
धन्यवाद रजनीश जी !
bachpan ki yaden bahut hi suhaani hoti hain !!!
बचपन बहुमुल्य होता है, बचपन की यादें जीवन की सच्ची साथी होती हैं, काश! हमे वही जीवन फ़िर से मिल पाता जो पीछे छुट चुका है?
बिल्कुल गॉंवगिराम की खुशबू से ओतप्रोत संस्मरण, उनके लिए जो दूर बसे हुए हैं, उन्हें अपनी जमीन और मिटटी की याद ताजा करने के लिए काफी है, बहुत बढिया है, कुछ क्षण हम भी आप और भी निश्चित रूप से खो जायेंगे अपने बचपन की यादों में,कुसुम जी को बधाई ढेर सारी बधाई
अरूण कुमार झा
आपकी संस्मरण कड़ी लाजवाब रही । आपने बाँध के रख दिया इस संस्मरण में । बहुत खूब। अगले अंक का इन्तजार रहेगा
" bahut hi badhiya laga aapki is post ko padhker "
" YAADOAN ko aapne jis tarah se sajaya hai vo kabile tarif hai ...aapne to hume baandh ker rakh diya ."
badhai
----- eksacchai { aawaz }
http://eksacchai.blogspot.com
आप सभी को उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
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