"संजो रही बस स्मृतियों को "
समय भी इतना बदल जायेगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।
हम तो रहते थे प्रतिपल ,
स्नेह सुधा लुटाने को ।
स्वयं के लिए न सोची अब तक ,
आज लगे सब बदला बदला ।
समय भी इतना बदल जाएगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।
खुशियों की तो बात ही क्या है ,
वह तो अपनो के सँग है ।
अब हम हर पल वारें किस पर ,
दूर देश मे वे बसते हैं ।
समय भी इतना बदल जायेगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।
यह मन बसता अब भी उनपर ,
जो हैं हमसे कोसों दूर ।
पर आह्लाद करें हम कैसे
संजो रही बस स्मृतियों को ।
समय भी इतना बदल जाएगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।
- कुसुम ठाकुर -
8 comments:
bahut sundar-aabhar
waah !
bahut achhi kavita.........
बहुत अच्छी रचना...बधाई...
नीरज
सुन्दर भाव।
भूत भबिष्यत वर्तमान की ढ़ूँढ़ रहीं पदचाप।
अच्छा लगा कि अपने बारे सोच रहीं हैं आप।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
खुशियों की तो बात ही क्या है ,
वह तो अपनो के सँग है ।
अब हम हर पल वारें किस पर ,
दूर देश मे वे बसते हैं ।
kya baat hai.. bahut khoob....
bahut khubsurat kavita aapki..badhai swiakre..chandrapal
यह मन बसता अब भी उनपर ,
जो हैं हमसे कोसों दूर
मन की बात कह दी आपने... अच्छा लगा.
समय भी इतना बदल जायेगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।
----- bahut hi badhiya ..ek acchi rachana
---eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
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