"ढूँढू तो पाऊँ मैं कैसे "
पर ढूँढूँ मैं तुमको वैसे ,
ढूँढूँ तो पाऊँ मैं कैसे ?
आज मैं कहना कुछ चाहूँ
पर ,कहूँ किसे यह समझ न पाऊँ ।
याद करूँ मैं हर पल तुमको ,
ढूँढूँ कैसे समझ न हमको।
कैसे बीता साथ सफर यह
समझ न पाई राज अभी वह।
अब तो लगता दिन भी भारी ,
रातों को तो स्वप्न ही सारी।
ध्यान में लिए छवि मैं सींचूं ,
पलक संपुटों में मैं भींचूं ।
जाने कब वह बस गयी उर में ,
चली गयी निद्रा के वश में ।
अर्ध रात्रि को नींद खुली तो ,
कानों ने यह बात सुनी तो _
मैंने तुमसे प्यार किया है ,
अपना सब कुछ वार दिया है ।
पर ढूँढूँ मैं तुमको वैसे ,
ढूढूं तो पाऊँ मैं कैसे ?
- कुसुम ठाकुर -
9 comments:
mil jayega
mil jayega
mil jayega
achchhi rachna
यह कविता अपने बनावट और बुनावट से एक बेहतरीन रचना तो है ही साथ मे भाव भी इतना प्रवाह मय है की इसे गुनगुनाने को जी चाह रहा है.......बहुत बहुत बधाई!
बहुत सुंदर सोच है आप की
एक बेहतरीन रचना....बहुत बहुत बधाई!
अर्ध रात्रि को नींद खुली तो ,
कानों ने यह बात सुनी कि _
मैंने तुमसे प्यार किया है ,
अपना सब कुछ वार दिया है ।
shandaar...
khubsurat ehsaas ,lajawab
समर्पण का भाव लिए प्रवाहपूर्ण रचना कुसुम जी। सुन्दर।
चाह अगर सच्ची हो दिल में लगा हो उस पर ध्यान।
नहीं ढ़ूँढ़ना पड़े उसे कुछ मिल जाते भगवान।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
आप सभी साथी चिट्ठाकारों को उत्साह बढाने के लिए बहु बहुत धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर व भावपूर्ण कविता के लिए बधाई।
घुघूती बासूती
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