"वीरान उपवन "
आज यह वीरान उपवन ,
किसकी बाट तक रहा है ।
शायद कोई माली आए ,
यह लगी मन में जगी है ।।
वह समय था जब कि उपवन ,
फूलों लताओं से महक उठता ।
पर आज उसकी दशा को ,
देखने न आते परिंदे ।।
था समय वह एक अपना ,
जब कि वह अभिमान में था ।
तितलियों की बात क्या थी ,
भौंरे भी मंडराते रहते ।।
कलियाँ जहाँ खिलखिलातीं ,
छटाएँ फूलों की निराली ।
रस चुरातीं मधुमक्खियाँ ,
अठखेलियाँ करता पवन भी ।।
है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
जहाँ थे चुने जाते तिनके ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।
- कुसुम ठाकुर -
9 comments:
आप बहुत अच्छा लिखती हैं
एक अच्छी रचना
समय साथ न दे तो कोई साथ नहीं देता ..सही सुन्दर रचना .
"है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
तिनके भी चुने जाते जहाँ से ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।"
सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से सारी सच्चाई बयान कर दी है आपने।
यह बात सच है कि समय बलवान होता है .........सुन्दर अभिव्यक्ति !
bahut sunder likha hai viraha mun ki vedna
dhanyevad
kabil-e-tareef.
आप सभी स्नेही जनों को बहुत बहुत धन्यवाद ।
" behad khubsurat rachana ...
है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
जहाँ थे चुने जाते तिनके ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।
bahut hi accha laga ye padhker "
----- eksacchai { AAWAZ }
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है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
जहाँ थे चुने जाते तिनके ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।
kusum ji
wah
uttam ...acha laga aapko padhker
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