वीरान उपवन



"वीरान उपवन "

आज यह वीरान उपवन ,
किसकी बाट तक रहा है ।
शायद कोई माली आए ,
यह लगी मन में जगी है ।।


वह समय था जब कि उपवन ,
फूलों लताओं से महक उठता ।
पर आज उसकी दशा को ,
देखने न आते परिंदे ।।


था समय वह एक अपना ,
जब कि वह अभिमान में था ।
तितलियों की बात क्या थी ,
भौंरे भी मंडराते रहते ।।

कलियाँ जहाँ खिलखिलातीं ,
छटाएँ फूलों की निराली ।
रस चुरातीं मधुमक्खियाँ ,
अठखेलियाँ करता पवन भी ।।


है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
जहाँ थे चुने जाते तिनके ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।


- कुसुम ठाकुर -

9 comments:

अनिल कान्त said...

आप बहुत अच्छा लिखती हैं
एक अच्छी रचना

रंजू भाटिया said...

समय साथ न दे तो कोई साथ नहीं देता ..सही सुन्दर रचना .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
तिनके भी चुने जाते जहाँ से ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।"

सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से सारी सच्चाई बयान कर दी है आपने।

ओम आर्य said...

यह बात सच है कि समय बलवान होता है .........सुन्दर अभिव्यक्ति !

rajani kapoor said...

bahut sunder likha hai viraha mun ki vedna
dhanyevad

दीपक 'मशाल' said...

kabil-e-tareef.

Kusum Thakur said...

आप सभी स्नेही जनों को बहुत बहुत धन्यवाद ।

SACCHAI said...

" behad khubsurat rachana ...
है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
जहाँ थे चुने जाते तिनके ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।

bahut hi accha laga ye padhker "

----- eksacchai { AAWAZ }

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Unknown said...

है कोई उसका न माली ,
न कोई सींचे उसे अब ।।
जहाँ थे चुने जाते तिनके ,
सूखे पत्ते पड़े हुए अब ।।
kusum ji
wah
uttam ...acha laga aapko padhker