कैसे कहूँ मुझे क्यों है फिकर इतनी


" मुझे क्यों है फिकर इतनी "

कैसे कहूँ मुझे क्यों है फिकर इतनी ,
कभी ख़ुद के लिए न शिकन जितनी ।
सुनी जब से है नासाज तबियत उसकी ,
न है चैन न पाऊँ तो ख़बर उसकी ।

कहने को तो दूर है वो मुझसे,
पर लगता है जैसे वो करीब रूह से ।
महसूस मैं करुँ बदलूँ जब करवट,
हाय इस हाल में तड़पूँ कब तक ।

लगूँ गैर सा मगर ये तड़प जब तक ,
आए भी न चैन न लूँ साँसें तब तक ।
कोई बतला दे मैं बयाँ करूँ कैसे ,
न मैं गैर, न हूँ अजनबी वैसे ।।

- कुसुम ठाकुर -


8 comments:

संगीता पुरी said...

सुंदर रचना !!

Jandunia said...

आपकी कविता अच्छी लगी

Jandunia said...

आपकी कविता अच्छी लगी

अनिल कान्त said...

बहुत प्यारी रचना है जी

ओम आर्य said...

एक प्यारा एहसास जब इंसान प्यार होता है तो ऐसाही होता है न?

बहुत ही खुबसूरत रचना!

RAJNISH PARIHAR said...

किसी का अहसास जब हर पल अपने साथ रहता है तो इतनी ही फिक्र होती है ...

SACCHAI said...

लगूँ गैर सा, मगर ये तड़प जब तक ,
आए भी न चैन , न लूँ साँसें तब तक ।
कोई बतला दे, मैं बयाँ करूँ कैसे ,
न मैं गैर, न हूँ अजनबी वैसे ।।
bahut hi umda rachana ....badhai

----- eksacchai{ AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Kusum Thakur said...

आप सभी साथी चिट्ठाकारों को उत्साहवर्धन के लिए
बहुत बहुत धन्यवाद।