"रहूँ मैं ऊहापोह में "
सोचूँ मैंने क्या बुरा किया ,
दिल की कही न छोड़ दिया ।
समय की पुकार को ,
किया कभी न अनसुना ।
किया कभी न आत्मसात ,
ह्रदय की पुकार को ।
चली तो सदा साथ साथ ,
समय को निहार कर ।
कठिन तो लागे है डगर ,
यह सोचूँ बार बार मैं ।
दिल की कही जो छोड़ दूँ । रहूँ मैं ऊहापोह में ।
- कुसुम ठाकुर -
8 comments:
अच्छा लिखा है ........ दिल का सोचा ही करना चाहिए .......... दिल के जज्बातों को अच्छे से उतारा है आपने ......
दिल की कही जो छोड़ दूँ ।
रहूँ मैं ऊहापोह में ।
दिल की सुनिए , मस्त रहिये
यही मन्थन ज़िन्दगी भर चलता है
और
जीवन अपनी गति से चलता रहता है
बहुत उम्दा ----------भावपूर्ण कविता
अभिनन्दन !
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
बिना सोचे ज़िंदगी गुज़ारने वाले ऊहा-पोह में ही रहते हैं.. लेकिन आप ऐसा मत करिएगा..
हम तो दिल की ही सुनते आये हैं ...आपको भी यही सलाह दे सकते हैं ...मुफ्त में सलाह देने लेने में क्या जाता है ...!!
सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
आपके सुझाव और प्रतिक्रिया के लिए आभार ।
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