अगर न होते तुम जीवन में

"अगर न होते तुम जीवन में "

अगर न होते तुम जीवन में
मैं कैसे गीत सुनाती
अपनी भावनाओं को कैसे
लयबद्ध मैं कर पाती

मेरी रचना मेरे भाव
मेरे लय और मेरे साज
सबकी तान तुम्हीं ने थामा
मैं तो हूँ एक जरिया मात्र

आज जहाँ हूँ उसकी नींव
डाला तुमने बन दस्तूर
और उस इमारत के
हर श्रृंगार तुम्हीं हो

सृजनहार तुम्हीं हो
अलंकार तुम्हीं हो
प्रशंसक तुम्हीं हो
आलोचक भी तुम्हीं हो

- कुसुम ठाकुर -

12 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब, बेहद सुन्दर रचना, । बहुत-बहुत बधाई

रंजना said...

सुन्दर भाव....सहज सुन्दर अभिव्यक्ति...

mehek said...

सृजनहार तुम्हीं हो ,
अलंकार तुम्हीं हो ।
प्रशंसक तुम्हीं हो ,
आलोचक भी तुम्हीं हो
waah sunder abhivykati,prashansak aur alochak bhi wahi umda khayal.

Kusum Thakur said...

इस स्नेह पूर्ण प्रतिक्रिया के लिए आभार।

Satish Saxena said...

अगर न होते तुम जीवन में कैसे गीत सुनाती !
कैसे मधुर भावनाओं को, मैं लयबद्ध बनाती !

बहुत प्यारे भाव हैं आपके ! शुभकामनायें

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

अगर न होते तुम जीवन में ,
मैं कैसे गीत सुनाती ।
अपनी भावनाओं को कैसे ,
लयबद्ध मैं कर पाती ।

कोमल भावाभिव्यक्ति.

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन!

Unknown said...

अगर न होते तुम जीवन में ,
मैं कैसे गीत सुनाती ।
अपनी भावनाओं को कैसे ,
लयबद्ध मैं कर पाती ।..
अति सुन्दर कोमल भाव युक्त सहज भावाभिव्यक्ति ....बधाईयां ...

Unknown said...

संगीता स्वरुप जी ..इतनी सुन्दर भाव पूर्ण संसार से परिचित कराने के लिए कोटि कोटि अभिनन्दन....!!!

Anupama Tripathi said...

sunder bhav pradhan rachna ..

वीना श्रीवास्तव said...

सुंदर भाव..,प्यारे शब्द....

Sagar Singh said...

सुंदर भाव