मेरे भाव मेरी अभिव्यक्ति

मेरे भाव मेरी अभिव्यक्ति 
 
मेरे भाव कुछ भी हों , 
पर अभिव्यक्त मैं, न कर पाती । 
ऐसा क्यों होता मेरे साथ , 
यह समझ न पाऊं मैं। 
 भाव तो होते मेरे नेक , 
पर अभिव्यक्ति में ही दोष । 
अब मैं कैसे समझाऊँ , 
जो हो उनको यकीन । 
 मैं तो सोच समझकर बोलूँ , 
जो न लगे अप्रिय उन्हें । 
पर त्रुटि तो रह ही जाती , 
मैं भी मानूँ , हूँ मैं इंसान ।
 मेरे अंतर्मन की भाषा , 
समझ न पाए, यह मेरा कसूर । 
मैं कैसे उन्हें कष्ट पहुँचाऊँ , 
जिनपर मैं करूँ सदा यकीन।
 -कुसुम ठाकुर -

6 comments:

नीरज गोस्वामी said...

मैं तो सोच समझकर बोलूँ ,
जो न लगे अप्रिय उन्हें ।
पर त्रुटि तो रह ही जाती ,
मैं भी मानूँ ,मैं हूँ इंसान ।

सही कहा आपने...बहुत शाशाक्त अभिव्यक्ति की है अपने भावों की...बधाई...
नीरज

Mishra Pankaj said...

भाव तो होते मेरे नेक ,
पर अभिव्यक्ति में ही दोष ।
अब मैं कैसे समझाऊँ ,
जो हो उनको यकीन ।

bahut acchaa likha hai aapne !

Tulsibhai said...

" dil se agar kuch likhe to natiza aisi adbhut abivyakti ke roop me ubhar aata hai ....aapko aisi sunder rachana ke liye badhai "

----- eksacchai{ aawaz}

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निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर रचना है बधाई

Kusum Thakur said...

आप सभी का प्रतिक्रिया के लिए आभार ।

किरण राजपुरोहित नितिला said...

बहत अच्छी और चिन्तनशील रचना!!!!!!!!!
ििकरण राजपुराेिहत ििनितला