जाने मन ढूंढता क्यों है
पाकर स्नेह सम्भलता क्यों है
ठहर न पाया जो सदियों तक
उसके लिए सिसकता क्यों है
स्वप्न दिखा ज्यों बीते पल के
बस उसमें चमकता क्यों है
समझ न पाया क्या थी नेमत
फिर उससे डरता क्यों है
चाहत की अनुभूति फिर भी
हर पल वह लुढ़कता क्यों है
पा सदियों का स्नेह पलों में
न जाने तरसता क्यों है
कुसुम कामना वह काम आए
फिर कलियां मुरझाता क्यों है ?
- कुसुम ठाकुर -
11 comments:
सुंदर अतिसुन्दर बधाई
पा सदियों का स्नेह पलों में
न जाने अब तरसता क्यों है
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
चाहत की अनुभूति फिर भी
वह हर पल लुढ़कता क्यों है
बहुत सहज-सुंदर शब्दों में भावाभिव्यक्ति
पा सदियों का स्नेह पलों में
न जाने अब तरसता क्यों है
सुंदर शब्द संयोजन है कुसुम जी।
अच्छी कविता बन पड़ी है।
आभार
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ठहर न पाया जो सदियों तक
उसके लिए सिसकता क्यों है
बहुत खूब। धन्यवाद। शुभकामनायें
पा सदियों का स्नेह पलों में
न जाने अब तरसता क्यों है
यही तो त्रासदी है जितना मिल जाये और चाह बढ जाती है………………सुन्दर अभिव्यक्ति।
क्या आप हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी के सदस्य हैं?
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आप सबों को बहुत बहुत धन्यवाद !!
ठहर न पाया जो सदियों तक
उसके लिए सिसकता क्यों है
such deep & emotional lines.... excellent is d only word....
सुन्दर ...मन की कोमल अनुभूतियाँ सामने आयी . आपके कवि-मन को बधाई.....
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