जीवन का १५ साल कैसे बीता समझ में ही नहीं आता ...... बच्चे कब बड़े हुए , कैसे बड़े हुए, इसका भान तो है . अपनी जिम्मेदारी निभाने में कहाँ तक सफल हुई इसकी सफलता और असफलता का लेखा जोखा कुछ वर्षों बाद ही लिया जा सकता है पर अपने बच्चों की ख़ुशी और तरक्की देख दूसरे माता पिता की तरह मैं भी ख़ुशी से फूली नहीं समाती .
अमेरिका के शहर बहुत छोटे छोटे सुन्दर और व्यवस्थित हैं . शहर की सीमा नाम की कोई चीज़ ही नहीं है . कहाँ से शहर शुरू होता और कहाँ खत्म होता यह आम पर्यटक या नए लोगों को समझ पाना बहुत मुश्किल है. २३ को गृहप्रवेश था और अब हम नए घर में रह रहे हैं . "वेस्ट औरेंज" नु यार्क शहर से मात्र १५ मील की दूरी पर अवस्थित है . प्रसिद्ध वैज्ञानिक और बल्ब के अविष्कारक ने यहीं रह बल्ब का आविष्कार किया और अपनी अंतिम सांस भी यहीं पर लिय़ा . इस वजह से इस शहर का अपना अलग महत्त्व है. एडिसन की यादों को ताज़ा रखने के लिए खास खास जगहों पर प्रतीक के रूप में बड़े बड़े बल्ब बने हुए हैं . एडिसन हिस्टोरिक पार्क, संग्रहालय इस शहर में अब भी है .
एक बार किसी ने मुझसे पूछा कि अमेरिका का सबसे अच्छा क्या लगा...... तुरन्त ही मैंने जवाब दिया वहाँ के लोगों में अनुशासन और प्रदूषण रहित वातावरण . अमेरिका का नु यार्क वाला भाग भी अपनी प्राकृतिक छटाओं से भरा है . हमारा घर पहाड़ों पर अवस्थित है और घर के ठीक पीछे जंगल है जहाँ हिरन और तरह तरह के जानवरों को स्वाभिक रूप से विचरण करते देखा जा सकता है .
मैं पूरा अमेरिका घूम चुकी हूँ ऐसा तो नहीं कह सकती, क्यों कि अमेरिका बहुत बड़ा है , पर अमेरिका में काफी घूम चुकी हूँ यह कह सकती हूँ . खान पान से लेकर अनुशासन, सफाई और यातायात तक हर जगह बहुत सी सुविधाएँ हैं जो हमारे भारत में अभी होने में बहुत समय लगेगा . फिर भी कुछ दिनों रहने के बाद अपने वतन की याद तो आती ही है . घूमने के लिए आना और बात है .........पर लालसा कभी नहीं होती कि यहाँ सदा के लिए बस जाऊं .
अभी कुछ ही दिनों पहले मैं नेट पर किसी की लेख पढ़ रही थी .....उन्होंने लिखा था "हमारे यहाँ मरने के बाद लोग स्वर्ग जाते है .........अमेरिका तो साक्षात स्वर्ग है ". अमेरिका अच्छा तो मुझे बहुत लगता है सुविधाओं की तो बात ही क्या है . पर मुझे स्वर्ग सा नहीं लगा . मैं तो कहूँगी स्वर्ग की परिभाषा ही शायद उन्हें नहीं मालूम . एक तो स्वर्ग किसने देखा है. जिसे देखा जा सके वह स्वर्ग कैसे हो सकता है ? स्वर्ग की तो मात्र कलपना की जा सकती है .
6 comments:
आपने बिल्कुल सही बात कही और अपने देश से प्यारा कोई देश नही क्यूँकि यहाँ हमारी मिट्टी की खूशबू है जो हमारे दिल मे , हमारी साँसों मे बसी हुयी है और हर इंसान के लिये अपने देश से बढकर कोई देश नही होना चाहिये………सच है कुछ वक्त के लिये सब सही लगता है मगर फिर भी अपना अपना ही होता है और स्वर्ग वहीं होता है जहाँ हम अपने आप से जुडे रहें और खुश रहें……………जहाँ हमारी आत्मा को आत्मिक शाँति प्राप्त हो।
bilkul sahi kahaa aapne.main bhi ho aayaa hu amrika. bharat me kai aise shahar hai, jo svarg se kam nahi. lekin hamare log heen bhavanaa se grast hai. chikani sadak dekhi, gore log dekhe, to samajh liya swarga hai. har desh ki apni visheshata hoti hai. chaliye,isi bahane aap naye anubhav-lok se guzar rahi hai. parivaar k beeech rah kar khush hona badee baat hai.
अभी कुछ ही दिनों पहले मैं नेट पर किसी की लेख पढ़ रही थी .....उन्होंने लिखा था "हमारे यहाँ मरने के बाद लोग स्वर्ग जाते है .........अमेरिका तो साक्षात स्वर्ग है ". अमेरिका अच्छा तो मुझे बहुत लगता है सुविधाओं की तो बात ही क्या है . पर मुझे स्वर्ग सा नहीं लगा . मैं तो कहूँगी स्वर्ग की परिभाषा ही शायद उन्हें नहीं मालूम . एक तो स्वर्ग किसने देखा है. जिसे देखा जा सके वह स्वर्ग कैसे हो सकता है ? स्वर्ग की तो मात्र कलपना की जा सकती है .
..Swarg wahi jahan chain ho, khushi hai, sukun ho, apnepan se bhare logon ka ek jahan ho... jahan manushyata ho manushiyon mein..
... aapka aalkeh behat marsparshi hai...
haardik shubhkamnayne
आपने सच कहा अमेरिका में सब कुछ है लेकिन वो स्वर्ग नहीं...हो ही नहीं सकता...
नीरज
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
आप सभी का आभार !!
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