न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको

"न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको" 

न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको  
फिर कैसी ये प्रीत, बतलाऊँ किसको?

लगी कैसी लगन, रहूँ मैं यूँ मगन 
धरूँ ध्यान किसीका , पाऊँ मैं तुझको

क्या है तुम में वो, बात जपूँ दिन रात
कहूँ कैसे न मैं, समझूँ मैं तुमको

कहो तुम जो वही, लगे मुझको सही
क्यों न करूँ विश्वास, है अगन मुझको

मिला जब से है मीत, रुचे सब रीत
देखूँ उसे भी न तो, जँचे उसको

- कुसुम ठाकुर - 



8 comments:

संजय पाराशर said...

nice..

M VERMA said...

लगी कैसी लगन, रहूँ मैं यूँ मगन
धरूँ ध्यान किसीका , पाऊँ मैं तुझको
ऐसा ही/भी होता है
सुन्दर रचना

श्यामल सुमन said...

ध्यान किसी का पाना तुमको अच्छा है संवाद।
जहाँ लगन से मगन कुसुम है नहीं कोई अवसाद।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288

Randhir Singh Suman said...

nice

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

Dr. C S Changeriya said...

bahut khub



फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

ओम पुरोहित'कागद' said...

SUNDER !

Kusum Thakur said...

आप सबों का आभार !!