" रोना भी तो एक कला है "
रोना क्यों कर दुर्बलता है ?
यह तो नयनों की भाषा है
सुख देखे तो छलक जाता है
दुःख में फिर भी सहज आता है
लाख संभालो , न तब रुकता है
न निकट हो कोई आहत करता है
उमड़ घुमड़ जो बस जाता है
श्रांत ह्रदय वह कर देता है
रोना भी तो एक कला है
फिर क्यों लगे यह भरमाता है ?
- कुसुम ठाकुर -
8 comments:
सच में देखा जाये तो हमारे जीवन में आसुओं की अपनी एक अलग ही जगह है , कविता बहुत बढ़िया लगी ।
"घर की तामीर चाहे जैसी हो,
इसमें रोने की इक जगह रखना"
है तो खैर कला ही है. बढ़िया.
बहुत कमज़ोर और बहुत मज़बूत दोनों ही रो सकते हैं बस वक़्त वक़्त की बात है
अगर सायास रोया जाये तो कला है ।
मन का मैल धुले रोने से कला कहें विज्ञान।
हृदय बहुत निर्मल होता जब आँसू का सम्मान।।
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
यह कला है तो सहज ही साध्या है ।
हंसी और खुशी
दोनों में ही रोना कला है
जैसे मिष्ठान मिठाई में कंद कला है
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