कवि कोकिल विद्यापति


कवि कोकिल विद्यापति

"कवि कोकिल विद्यापति" का पूरा नाम "विद्यापति ठाकुर था। धन्य है उनकी माता "हाँसिनी देवी"जिन्होंने ऐसे पुत्र रत्न को जन्म दिया, धन्य है विसपी गाँव जहाँ कवि कोकिल ने जन्म लिया।"श्री गणपति ठाकुर" ने कपिलेश्वर महादेव की अराधना कर ऐसे पुत्र रत्न को प्राप्त किया था। कहा जाता है कि स्वयं भोले नाथ ने कवि विद्यापति के यहाँ उगना(नौकर का नाम ) बनकर चाकरी की थी। ऐसा अनुमान है कि "कवि कोकिल विद्यापति" का जन्म विसपी गाँव में सन १३५० . में हुआ अंत निकट देख वे गंगा लाभ को चले गए और बनारस में उनका देहावसान कार्तिक धवल त्रयोदसी को सन १४४० . में हुआ

यह उन्हीं की इन पंक्तियों से पता चलता है। :

विद्यापतिक आयु अवसान।
कार्तिक धवल त्रयोदसी जान।।

यों तो कवि विद्यापति मथिली के कवि हैं परन्तु उनकी आरंभिक कुछ रचनाएँ अवहटट्ठ(भाषा) में पायी गयी हैं अवहटट्ठ संस्कृत प्राकृत मिश्रित मैथिली है। कीर्तिलता इनकी पहली रचना राजा कीर्ति सिंह के नाम पर है जो अवहटट्ठ (भाषा) में ही है। कीर्तिलता के प्रथम पल्लव में कवि ने स्वयं लिखा है। :

देसिल बयना सब जन मिट्ठा।
ते तैसन जम्पओ अवहटट्ठा । ।

अर्थात : "अपने देश या अपनी भाषा सबको मीठी लगती है। ,यही जानकर मैंने इसकी रचना की है"।

मिथिला में इनके लिखे पदों को घर घर में हर मौके पर, हर शुभ कार्यों में गाई जाती है, चाहे उपनयन संस्कार हों या विवाह। शिव स्तुति और भगवती स्तुति तो मिथिला के हर घर में बड़े ही भाव भक्ति से गायी जाती है। :

जय जय भैरवी असुर-भयाउनी
पशुपति- भामिनी माया
सहज सुमति बर दिय हे गोसाउनी
अनुगति गति तुअ पाया। ।
बासर रैन सबासन सोभित
चरन चंद्रमनि चूडा।
कतओक दैत्य मारि मुँह मेलल,
कतौउ उगलि केलि कूडा । ।
सामर बरन, नयन अनुरंजित,
जलद जोग फुल कोका।
कट कट विकट ओठ पुट पाँडरि
लिधुर- फेन उठी फोका। ।
घन घन घनन घुघुरू कत बाजय,
हन हन कर तुअ काता।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक,
पुत्र बिसरू जुनि माता। ।

इन पंक्तियों में कवि ने माँ के भैरवी रूप का वर्णन किया है।

14 comments:

सुभाष चन्द्र said...

स्टोरी अच्छी है... काफी जानकारी दी है आपने...यदि वर्तनी का ध्यान रखा जाता तो पढने में खटका नहीं लगता .

कुमार राधारमण said...

इस बात पर एकराय है कि विद्यापति का अंतिम क्षण बनारस में नहीं बल्कि बिहार के समस्तीपुर जिले में बीता जहां गंगा की मुड़ी धार और उस स्थल पर विद्यापति का मंदिर आज भी अवस्थित है। अब विद्यापतिनगर एक रेलवे स्टेशन तो है ही,ब्लॉक भी बन गया है।

Yashwant Mehta "Yash" said...
This comment has been removed by the author.
Yashwant Mehta "Yash" said...

विद्यापति जी के गीत बहुत सुन्दर लगते है हमें

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Udan Tashtari said...

आभार विद्यापति जी के बारे में इस प्रस्तुति का.

Manish Kumar said...

Achcha laga Vidyapati ji ke bare in jaankariyon ko padhna.

गौतम राजऋषि said...

उनके गीतों को ही सुन-सुन कर तो बड़े हुये हैं हमलोग दीदी।

"जय-जय भैरवी" वाले इस गीत के बाद "चानन भेल विषम सन रे भूषण भेल भारी" और वो "बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे" मेरे सर्वकालीन पसंदीदा गीत हैं जिन्हें सुनते हुये मैं कभी नहीं अघाता।

kshama said...

Pahli baar aayi aapke blog pe aayi...bahut khoob!

निर्मला कपिला said...

विद्यापति जी का परिचय और गीत पढ कर बहुत खुशी हुयी। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।

Kusum Thakur said...

आप सभी को प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

Unknown said...

Hi!

it is extremly well can we publish ur story with ur name & image to our local maithily news paper at mumbai sama chakeba..

please sent us ur write up on my email...
wish to talk.
Regards

Kailash choudhary
Idea 9011020295

Unknown said...

Bidyapati ka maitheli vasha ka rachanai ka nam kiya tHa?

Unknown said...

Any body say plz plz?