भावाकुल मन ढूँढ़े तुमको


(आज नरक निवारण चतुर्दशी के अवसर पर यह कविता उस व्यक्ति को समर्पित करती हूँ जो मेरे लिए प्रेरणा , मेरे गुरु तथा साथी सदा थे और रहेंगे । संयोगवश आज उनका भी जन्मदिन है। )

" भावाकुल मन ढूँढ़े तुमको "


काश, आज आपने शब्दों को ,
अर्पित कर पाती मैं तुमको ।
मेरे मन का सहज भाव फिर ,
नया राग दे जाता मुझको ।


भूलूँ मैं कैसे उन पल को ,
मुझे लगे जैसे वह कल हो ।
नित्य नए एक रूप में देखी ,
समझ न पाई पर मैं तुमको ।


सुख की यादें बंद नयनों में ,
क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।


क्या कला क्या जीवन रंग हो ,
मैंने तो बस सीखा कल को ।
लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।

- कुसुम ठाकुर -




15 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर,
व्याकुल भावों की सुन्दर प्रस्तुति.
बधाई

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

काश, आज आपने शब्दों को ,
अर्पित कर पाती मैं तुमको ।
मेरे मन के सहज भाव फिर ,
नया राग दे जाता मुझको ।
aap to bahut achhi kavita karti hain.meri anant shubkamnayen kusumji.

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

मनोज कुमार said...

सुख की यादें बंद नयनों में ,
क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।

बहुत बहुत बधाई...

girish pankaj said...

sundar bhavanao se saji...pyari kavita.

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब , लाजवाब अभिव्यक्ति लगी , साथ ही आपका शब्दो को पिरोना भी बहुत भाया ।

श्यामल सुमन said...

बहुत भावपूर्ण कविता कुसुम जी। मन के तारों को स्पर्श करने वाली रचना। बहुत पसन्द आये आपके प्रस्तुत भाव। लेकिन आदत से मजबूर - पेश करता हूँ ये तात्कालिक पंक्तियाँ - जिसे आपकी रचना ने जन्म दिया है -

भावाकुल जिसके लिए मिलेंगे अपने आप।
दुख भी जब सपना लगे फिर कैसा संताप।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू जाने वाला गीत, बधाई।
--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।

Unknown said...

भावाकुल मन ढूंढें तुमको, अच्छी लाईन है
रचना अच्छी लगी बधाई.

Creative Manch said...

क्या कला क्या जीवन रंग हो ,
मैंने तो बस सीखा कल को ।
लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।


बहुत सुन्दर प्रस्तुति
लाजवाब रचना
बधाई


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निर्झर'नीर said...

लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।

sundar ati sundar bhabd bhaav or dhara pravah

नीरज गोस्वामी said...

सुख की यादें बंद नयनों में ,
क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।

वाह...अप्रतिम रचना...भावनाओं से ओत प्रोत...
नीरज

गौतम राजऋषि said...

समझ सकता हूँ दीदी आपके मनोभाव को....उनपर तो हमारे पूरे मैथिली समाज को गर्व है।

उधर वो भी मुस्कुरा रहे होंगे गर्व से आपको देखकर...

Kusum Thakur said...

मैं तो आप सबों का स्नेह देख अभिभूत हूँ . बहुत बहुत धन्यवाद !!
गौतम ,
मेरे मनोभावों को समझने के लिए ढेर सारा स्नेह!!

sanjeev kuralia said...

बहुत सुंदर भाव ..... आभार !