रंग मंच सा लगता मुझको


" रंग मंच सा लगता मुझको "

रंग मंच सा लगता मुझको
मैंने दुनिया को ना जानी ।

जीवन के इस रंग मंच पर
कलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
होती है अभिनय मन मानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।

दो अन्जाने मिल जाते हैं
मिलकर अभिनय कर जाते है
अभिनय करना एक कला है
कला नहीं तो है नादानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।

मंच जहाँ भी मिल जाता है
जाकर वहाँ ही रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।

- कुसुम ठाकुर -


21 comments:

Mithilesh dubey said...

मंच जहाँ भी मिल जाते हैं
बस उसमे ही रम जाते हैं
पटाक्षेप का खबर नहीं जो
यह न है नादानी
दुनियाँ को मैं ने न जानी ।

सच कहा आपने । खूबसूरत रचना , बधाई

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा बात कही!!

मनोज कुमार said...

जीवन के इस रंग मंच पर
कलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
अभिनय करे मन मानी
दुनिया को मैं ने न जानी ।
वाह। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सटीक। समयोचित। सार्थक।

शरद कोकास said...

दुनिया को रंगमंच के अलग तरह के बिम्ब मे प्रस्तुत करती यह एक बेहतरीन कविता है ।

Unknown said...

कुसुमजी आपने अपनी रंगमंच की दुनिया को इस कविता में उतार दिया है बधाई.

वाणी गीत said...

दुनिया रंगमंच ही तो है ...और हम सब कलाकार ...अपना पात्र ठीक से निभा ले बस ...!!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जिंदा रहना एक जंग है
दुनिया एक रंग मंच है

हम सब पात्र है नाटक के

खुब सुरत अभिव्यक्ति। आभार
नुतन वर्ष की शुभ कामनाएं

शोभना चौरे said...

sshkt rachna .
badhai

shama said...

दो अन्जाने मिल जाते हैं
मिलकर अभिनय कर जाते है
अभिनय करना एक कला है
कला नहीं तो है नादानी
मैंने दुनिया को न जानी ।

Sach kaha...eksaath rahkar bhee do log ek doojese anjaan rah jate hain!

संजय भास्‍कर said...

aap ki kavita bahut achi lagi. aap ka likha har sabda dil ki gahraiyo ko chu jata hai.

संजय भास्‍कर said...

behtreen rachna...

sanjay bhaskar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

गौतम राजऋषि said...

उफ़्फ़्फ़...दीदी, बहुत सुंदर लिखा है आपने।

"मंच जहाँ भी मिल जाते हैं
जाके उसमे रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी "

बहुत खूब और ब्लौग का नया कलेवर भी खूब फ़ब रहा है। शीर्षक को तनिक बोल्ड में लिखा कीजिये...एक बेहतरीन रचना के लिये हृदय से बधाई दी!

निर्मला कपिला said...

मंच जहाँ भी मिल जाते हैं
जाके उसमे रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी
मैंने दुनिया को न जानी ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। बधाई

Unknown said...

बेहतरीन रचना के लिये हृदय से बधाई

Kulwant Happy said...

आपकी रचना बेहद अद्भुत थी। फिर भी मैं यहाँ कुछ अटकता चला गया।


मैंने दुनिया को न जानी।

शायद

मैं दुनिया को न जानी

रचना दीक्षित said...

हैरत की बात है इतना कुछ जान कर भी कहती हैं की कुछ नहीं जानती .बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

dweepanter said...

मंच जहाँ भी मिल जाते हैं
जाके उसमे रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी
मैंने दुनिया को न जानी ।


बहुत सुंदर रचना ......
द्वीपांतर परिवार की ओर से लोहड़ी एवं मकर सकांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

Kusum Thakur said...

सभी चिट्ठाकार साथियों को उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

shashank kashya said...

जीवन के इस रंग मंच पर
कलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
होती है अभिनय मन मानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।

...a small poem with a volumnous meaning within ... regards

भरत चावरे said...

Pratibhavant kavyitri ki
prtibhvant kavita...

Bas etna hi likh sakta hu

Regards,

Unknown said...

bahut badiya ...rang -manch kajo prayopg aapne kiya ...adhbhut ...vilakshan