शब्द न मैं दे पाती हूँ



" शब्द न मैं दे पाती हूँ "

शब्दों के बस महाजाल में
उलझ उलझ रह जाती हूँ
लब तो है कहने को उद्धत
कुछ न मैं कह पाती हूँ


भावों की न कमी नयनों में
बस समझ उन्हें न पाती हूँ
उनके नम उद्गारों से क्यों
खुद विचलित हो जाती हूँ


अभिलाषा मेरे स्वभाव का
बस मुखर नहीं हो पाती हूँ
अंतर्मन की भाषा को क्यों
आत्मसात कर जाती हूँ


अंतर्द्वन्द को लिए ह्रदय में
उलझ स्वयं ही जाती हूँ
यह कैसी विह्वलता मेरी
शब्द न मैं दे पाती हूँ

- कुसुम ठाकुर -



17 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

भावों की न कमी नयन में
बस समझ उन्हें न पाती हूँ ।
उनके नम उद्गारों से क्यों
खुद विचलित हो जाती हूँ ।।

बेहद उम्दा रचना...बढ़िया गीत..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अत्यंत सुंदरानुभूति.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अंतर्द्वन्द को लिए ह्रदय में
स्वयं ही उलझ जाती हूँ ।
अपने इस विह्वलता को क्यों
शब्द न मैं दे पाती हूँ ।।

अन्तर्द्वन्द का भाव पुर्ण चित्रण
आभार

Anonymous said...

सुन्दर रचना,
बधाई

girish pankaj said...

अच्छी रचना.थोडा-सा उलट-फेर करने मन कर रहा है. देखें, इससे प्रवाह शायद बढ़ जायेगा..
शब्दों के बस महाजाल में
उलझ-उलझ रह जाती हूँ ।
लब तो उद्धत कहने को पर
कुछ न मै कह पाती हूँ ।।...
बाकी बंद ठीक है. बधाई, इस स्नेहिल- सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए.

मनोज कुमार said...

अंतर्द्वन्द को लिए ह्रदय में
स्वयं ही उलझ जाती हूँ ।
अपने इस विह्वलता को क्यों
शब्द न मैं दे पाती हूँ ।।
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति। बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

श्यामल सुमन said...

भावों की न कमी नयन में
बस समझ उन्हें न पाती हूँ ।
उनके नम उद्गारों से क्यों
खुद विचलित हो जाती हूँ ।।

वाह वाह। सुन्दर भावाभिव्यक्ति। मन को प्रभावित करने वाली रचना कुसुम जी। लीजिये आपको पढ़कर तात्कालिक पंक्तियाँ जो उपजीं, पेश है-

हरएक भाव पर शब्द सजाना क्या मुमकिन हो पाता है?
सच तो यह जब नयन बोलते मुँह बन्द हो जाता है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

अत्यंत सुंदरानुभूति.

Udan Tashtari said...

सुन्दर प्रवाहमय एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

Mithilesh dubey said...

बेहद उम्दा व लाजवाब ।

Pawan Kumar said...

शब्दों के बस महाजाल में
उलझ उलझ रह जाती हूँ ।
लब तो है कहने को उद्धत
कुछ न मैं कह पाती हूँ ।।
..............बहुत कुछ तो कह दिया आपने अब क्या बचा कहने को...

गौतम राजऋषि said...

अच्छा छंद और मोहक सहज शब्दों से सजी एक सुंदर कविता दीदी! बहौत खूब!!

Kusum Thakur said...

प्रतिक्रिया देने के लिए सभी चिट्ठाकार साथियों को आभार !!

रंजू भाटिया said...

अंतर्द्वन्द को लिए ह्रदय में
उलझ स्वयं ही जाती हूँ ।
यह कैसी विह्वलता मेरी
शब्द न मैं दे पाती हूँ ।।

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति शुक्रिया

Randhir Singh Suman said...

शब्दों के बस महाजाल में
उलझ उलझ रह जाती हूँ ।
लब तो है कहने को उद्धत
कुछ न मैं कह पाती हूँ ।।nice......nice....nice.............

सर्वत एम० said...

अत्यंत गतिमान, त्वरित, भावपूर्ण रचना परोसी है आपने. सच, एक समय ऐसा आता है जब चाहने के बावजूद भाषा जिह्वा का साथ देने में असमर्थ हो जाती है. आपने अनुभव को जिस तरह कविता में पिरोया है, उसके लिए यदि सराहना न की जाए तो तो यह साहित्य के साथ गद्दारी होगी. बधाई.

SHAKTI PRAJAPATI said...

MUJHE LAGTA HAI RACHNA MAIN KAI JAGAH KHALI ISTHAN HAIN,KIS VAJAH SE AAP HI JANEIN,HAAN APKA KHAYAL ACCHA HAI,PAR KUCH ULJHA HUA SA,ASHA AGLI RACHNA UTKRISTH HOGI.