"जुस्तज़ू "
प्यार मैं जो करूँ क्यों बगावत करूँ
प्यार मैं जो करूँ क्यों बगावत करूँ
कैसे अब मैं न उसकी इबादत करूँ
क्या खता थी मेरी मुझे नहीं है पता
किससे शिकवा करूँ क्या शिकायत करूँ
लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
कैसे इज़हार करूँ न अनायत करूँ
जुस्तज़ू थी मेरी जो मुझे मिल गई
इक कशक आबरू की हिफाज़त करूँ
सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
किसी को भला क्यों मैं आहत करूँ
- कुसुम ठाकुर -
क्या खता थी मेरी मुझे नहीं है पता
किससे शिकवा करूँ क्या शिकायत करूँ
लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
कैसे इज़हार करूँ न अनायत करूँ
जुस्तज़ू थी मेरी जो मुझे मिल गई
इक कशक आबरू की हिफाज़त करूँ
सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
किसी को भला क्यों मैं आहत करूँ
- कुसुम ठाकुर -
20 comments:
बहुत बढ़िया,
सम्पूर्ण भाव को समेटा है.
बधाई स्वीकारिये
लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
कैसे इज़हार करूँ न शिकायत करूँ
हृदय की बेचैनी साफ साफ झलक रही है इस शेर में। बहुत सुन्दर भाव की पंक्तियाँ कुसुम जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
क्या खता थी मेरी मुझे नहीं है पता
किससे शिकवा करूँ क्या शिकायत करूँ
सुंदर मन के सुंदर भावों को व्यक्त करती बहुत बढ़िया ग़ज़ल..बधाई
बेहतरीन..पसंद आई!!
अच्छी कविता..........
बधाई !
जुस्तज़ू थी मेरी जो मुझे मिल गई
इक कसक आबरू की हिफाज़त करूँ
बहुत अच्छे भाव।
प्यार करूँ तो कैसे इजहार ना करू ...कैसे शिकायत ना करू ...
बहुत खूब ...क्यों ना करे ...!!
it is a beautiful & meaningful poem . thanx
बेहद उम्दा व लाजवाब रचना । बहुत-बहुत बधाई आपको
सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
किसी को भला मैं आहत क्यों करूँ,
बहुत सुंदर भाव है। आभार
huuum....achhi rachna...
लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
कैसे इज़हार करूँ न शिकायत करू
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
आप सबों का उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
हर शब्द एक गहराई लिये हुये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
Komal bhavon ki atisundar mugdhkari abhivyakti.....
Bahut bhut bhut hi sundar rachnaa...man harshit ho gaya padhkar..aabhaar...
अच्छी रचना दी!
बेहतरीन..पसंद आई!!
सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
किसी को भला मैं आहत क्यों करूँ
... बहुत खूब, प्रसंशनीय !!!!
आप सभी को उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
bahut khub... ur words penetrate deep...
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