"कैसे भूलूँ उस पल को यूँ "
कैसे भूलूँ उस पल को यूँ ,
जिसकी तपिश न हुई हो कम ।
दग्ध करे अब भी हर पल ,
थे अवसादों से भरे वे क्षण ।
चाही तो बस इन नयनों से ,
काश ! साथ वे दे पाते ।
अंसुवन को वश में रख लेती ,
तब भी यह दिल भर आता ।
याद जिसे करना चाहूँ मैं ,
उसे तो मैं फ़िर भी भूलूँ ।
पर बीच में वह मंज़र आ जाता ,
उस पल को कैसे भूलूँ ।।
- कुसुम ठाकुर -
कैसे भूलूँ उस पल को यूँ ,
जिसकी तपिश न हुई हो कम ।
दग्ध करे अब भी हर पल ,
थे अवसादों से भरे वे क्षण ।
चाही तो बस इन नयनों से ,
काश ! साथ वे दे पाते ।
अंसुवन को वश में रख लेती ,
तब भी यह दिल भर आता ।
याद जिसे करना चाहूँ मैं ,
उसे तो मैं फ़िर भी भूलूँ ।
पर बीच में वह मंज़र आ जाता ,
उस पल को कैसे भूलूँ ।।
- कुसुम ठाकुर -
11 comments:
बहुत सुन्दर,
"कैसे भूलूँ उस पल को !"
भावपूर्ण कविता
बधाई स्वीकारें
चाही तो बस इन नयनों से ,
काश ! साथ वे दे पाते ।
अंसुवन को वश में रख लेती ,
तब भी यह दिल भर आता ।
उफ़! बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ......
सुंदर कविता.......
कैसे भूलूँ उस पल को यूँ ,
जिसकी तपिश न हुई हो कम ।
दग्ध करे अब भी हर पल ,
थे अवसादों से भरे वे क्षण ।
बेहद लाजबाब भाव , कुसुम जी !
जी हां कुछ लम्हें ऐसे होते हैं जिन्हें भुलाना मुश्किल होता है
दुख के नाजुक लम्हे भूलो,
सुख की घड़ियाँ याद करो।
बहुत कीमती होते आँसू,
मत लड़ियाँ बरबाद करो।।
बहुत ही सुन्दर शब्दों में बयां बेहतरीन प्रस्तुति ।
शायद आपने कविता में अपने मन के किसी कोने में उगे हुए विचार प्रस्तुत किए हैं, हो सकता है हम पूरी तरह न साँझ पाए हों
भूलना बहुत कठिन है। सुन्दर कविता लिखी है।
घुघूती बासूती
बेहतरीन शब्दों से
बेहतरीन भावों से
और बेहतरीन काव्य-सौन्दर्य से युक्त
इस प्यारी रचना के लिए बधाई आपको.........
nice post
maine apney blog per ek kavita likhi hai- roop jagaye echchaein- samay ho to padein aur comment bhi dein.
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
बहुत सुंदर कविता दीदी!
जितना सुंदर प्रवाह, उतने ही मोहक शब्द-संयोजन।
Post a Comment