मीत सँग हो भोर

 "मीत सँग हो भोर"

जीवन जीने की कला, मिला तुम्ही से मीत।
अब आकर इस मोड़ पर, बढ़ा और भी प्रीत।।

गहरे होते भाव जो, वो‌ उतने  गंभीर।
बिनु बोले जो कह गए, नैनो की तासीर।।

ह्रदय सदा ही ढूँढता, मिलने का संयोग।
कहने को तो बहुत पर, कैसे सहूँ वियोग।।

स्त्रोत प्रेरणा का मिला, वही सृजन का हार।
दिशा दिखाया आपने, बहुत बड़ा उपकार।।

मन-दर्पण को देखकर, होते भाव विभोर।
कुसुम हृदय की कामना, मीत संग हो भोर।।

©कुसुम ठाकुर