टेलीग्राम की महिमा

  "टेलीग्राम की महिमा"

(यह लघु कथा मैंने दशको पहले लिखी थी , यह कथा उस ज़माने की है जब टेलीग्राम सबसे जल्दी समाचार पहुँचाने का जरिया था, शब्दों के हिसाब से पैसे लगते थे इसलिए कम से कम शब्दों में सन्देश भेजा जा सके यह कोशिश होती थी. लोग टेलीग्राम को पढ़ सन्देश का अनुमान खुद लगाते थे)  

सुधा के पिताजी बोकारो स्टील के एक उच्च अधिकारी थे उसके जेठ भी उन्ही के विभाग में कार्यरत थे. दरअसल सुधा की शादी में उसके जेठ जिठानी ने मुख्य भूमिका निभाई थी . सुधा और श्यामानंद का गांव आस-पास ही था अतः सुधा के खानदान के बारे में तो श्यामानंद के परिवार वाले पहले से ही जानते थे.  श्यामानंद की माँ को ज्यादा चिंता थी कि श्यामानंद खुद इतने सज्जन है तो उनकी शादी भी सुशील कन्या से होनी चाहिए । सुधा की जेठानी ने इसकी गारंटी लेते हुए अपनी सास से कहा कि "लड़की अत्यंत ही सज्जन और सुशील है "। श्यामानंद को अपने भाई भाभी पर बहुत भरोसा था फिर भी उन्होने एक बार अपनी भाभी को लड़की से मिलवाने का जिक्र किया पर माँ नहीं मानी, उन्होंने साफ़ कह दिया उनके घर में आजतक किसी ने लड़की को शादी से पहले नहीं देखा है. श्यामानंद अपनी माँ की बात को ब्रह्म वाक्य मानते थे अतः उन्होंने शादी से पहले सुधा को देखने का ख्याल ही छोड़ दिया। 

सुधा अपने माता पिता की सबसे बड़ी संतान थी.  उसके दादा जी की पूरे इलाके में काफी प्रतिष्ठा थी पर वे काफी साल पहले ही परलोक सिधार गए थे दादी गांव में ही रहती थीं उनके आग्रह पर सुधा की शादी गांव से ही होना तय हुआ.  शादी के वक्त सुधा ने मैट्रिक पास कर कॉलेज में दाखिला लिया था, श्यामानंद फाइनल ईयर इंजिनियरिंग में थे.  दोनों की शादी काफी सादगी पर सारे रस्मों रिवाज के साथ संपन्न हुआ. सुधा अपने ससुराल चली गई और उसके माता पिता अपने बाकी के बच्चों के साथ बोकारो वापस चले गए . सुधा हर वर्ष अपने माता पिता के साथ गांव जाती थी पर ससुराल का माहौल कुछ अलग ही रहता है वो भी गांव का . दिनभर मिलने वालों का आना जाना लगा रहता था गाँव की बुजुर्ग महिलायें तो मिल लेतीं और कुछ देर पास में बैठने के बाद कमरे से बाहर जाकर उसकी सास के साथ बातें करतीं थीं पर गांव टोले की लड़कियां जिनसे ननदों का रिश्ता था उनका आना जाना लगा रहता। बहुत मुश्किल से दोपहर में कुछ देर आराम करने का समय मिलता। सुधा बैठे बैठे थक जाती पर कहे किससे ? उसकी स्थिति कभी कभी उसकी जेठानी भाप लेती और वे मिलने वाली ननदों को,  कुछ बहाने से बाहर ले जातीं और उसे इशारा कर देती कि कमरे बंद कर ले. 

सारी रस्मो रिवाज ख़त्म हो गई और एक एक कर अतिथि अपने अपने घर चले गए गांव में सुधा श्याम के आलावा उसके सास ससुर, जेठानी और एक छोटा देवर रह गए. एक दिन रात में श्याम ने सुधा से कहा अब मेरी छुट्टी ख़त्म हो रही है मुझे अब कुछ दिनों में लौटना होगा मेरे साथ भाभी भी जाएँगी उन्हें बोकारो छोड़ मैं रांची चला जाऊँगा। भैया जाते समय मुझे कहकर गए थे कि भाभी को बोकारो पहुँचाने का जिम्मा तुम्हारा ही है. तुम तो अभी कुछ दिन और यहाँ रहोगी तुम्हे लेने तुम्हारा भाई आएगा तुम्हारे पिताजी से मेरी बात हो गई थी.  सुधा यह सुन अपने पति से बोली मैं भी मायके आपके साथ ही जाना चाहती हूँ.  आप अपने पिताजी से अनुमति ले लें तो मैं भी आपके ही साथ बोकारो जा सकती हूँ. श्याम असमंजस में पड़ गए, सुधा को समझाते हुए उन्होंने कहा; अच्छा मैं सुबह पिताजी से बात करता हूँ पर शायद पिताजी नहीं माने पहली बार मायके से कोई न कोई लेने आता है यह हमारे यहाँ का रिवाज है फिर भी मैं उनसे बात करता हूँ.  

सुधा रात भर मायके जाने के विषय में ही सोचती रही, सुबह जल्दी उठ गई उसे मायके जाने की तीव्र इच्छा हो रही थी, उसने अपने पिताजी को एक चिट्ठी लिखी, जिसमे उसने लिखा पिताजी चूँकि श्याम अपनी भाभी को छोड़ने बोकारो जा रहे हैं मैं भी उन्ही के साथ आना चाहती हूँ. आप यदि श्याम के पिताजी को मेरी बिदाई के लिए आग्रह करें तो वो मान जाएंगे। मैं भी श्याम के साथ ही बोकारो आ जाऊँगी. उसने चिट्ठीअपने छोटे देवर को देकर उससे बोली अभी तुरंत जाकर पोस्ट ऑफिस में डाल दीजिये बहुत जरूरी चिट्ठी है.

सुधा चिट्ठी भेज तो दी पर उसके मन में तरह तरह के भाव आने लगे, कभी सोचती क्या ससुर जी उसे जाने देंगे ? कभी मन में आता उसकी सास को बुरा न लगे, वे तो सबसे कह रही थीं अभी बहु कुछ दिनों के लिए मेरे पास ही रहेगी कॉलेज खुलने से पहले फिर मायके चली जाएगी।  कभी मन में आता पहली बार है, दूसरी बार आएगी तो सास को अपने व्यवहार से खुश कर देगी। 

श्यामनन्द के जाने का समय ज्यों ज्यों नजदीक आता जा रहा था सुधा का मन उदास रहने लगा . उसके मन में तरह तरह के विचार आते, कभी सोचती सभी चले जायेंगे तो वह अपनी पढाई पर ध्यान देगी। कभी तो उसे लगता यहाँ तो न कोई मेरा साथी है न ही अपनी कोई ननद जिसके साथ बात चित या अपने मन की भावनाओं को व्यक्त कर सकूँ, सास से भी अभी तक खुलकर बातें नहीं कर पाती। काम काज करने की कई बार कोशिश की पर सास कहतीं हमारी सास ने भी मुझे पहली बार काम नहीं करने दिया था, अगली बार आना तो काम करना इसबार नहीं। 

सुधा अपने कमरे से निकलकर बैठक में जा रही थी उसकी दादी ने उसके चाचा को उससे मिलने के लिए भेजा था साथ में उसके लिए कपड़े और तरह तरह के पकवान और मिठाई भी.  वह अभी बैठक में पहुँच चाचा को प्रणाम की ही थी कि ससुर जी की आवाज आई कहाँ से टेलीग्राम आया है.  वह चाचा को प्रणाम कर बरामदे वाले दरवाजे के पास चली गई वहां से उसके ससुर जी की आवाज  सुनाई दे रही थी. उसके पति भी बाहर ही थे. पोस्ट मैन टेलीग्राम देने आया था . वह कह रहा था  बोकारो से टेलीग्राम आया है. सुधा बोकारो का नाम सुन और ध्यान से बातें सुनने का प्रयास करने लगी पर उसे समझ में नहीं आया वे लोग आपस में क्या बातें कर रहे थे. सुधा के चाचा को भी उसके ससुर जी ने बाहर बुला लिया। सुधा को जब कुछ समझ में नहीं आया तो अपने कमरे में आकर श्याम का इंतज़ार करने लगी. थोड़े ही इंतज़ार के बाद श्याम और श्याम के पिताजी के आंगन में आने की आवाज आई . उसके ससुर जी की आवाज अब स्पष्ट सुनाई दे रही थी वे सास से कह रहे थे कल सुधा और श्याम के जाने का इंतज़ाम करो और हाँ समाधी जी भी थोड़ी देर में चले जायेंगे उनके खाना और बिदाई का इंतज़ाम जल्दी कर दो. सरोज (बड़ी बहु) अभी नहीं जाएगी वो बाद में जाएगी। सुधा के समझ में नहीं आ रहा था आखिर टेलीग्राम में क्या है कि ससुर जी ऐसे बोल रहे हैं. खैर कुछ समय बाद श्याम आये और बोले सामान ठीक करो अपना और मेरा भी हम दोनों कल सुबह बोकारो जायेंगे, भाभी बाद में आएँगी।  सुधा ने धीरे से पूछा टेलीग्राम में क्या है और कहाँ से आया है. श्याम ने कहा "बाद में बताऊंगा " तुम सामान ठीक कर लो. 

सुधा के चाचा जाने के लिए तैयार थे, सुधा चाचा को प्रणाम करके बोली दादी को बता दीजियेगा मैं बोकारो जा रही हूँ वहां से चिट्ठी लिखूंगी। 

सुधा और श्याम ने सभी बड़ों को प्रणाम कर उनसे विदा लिया, सुधा के मन में बार बार प्रश्न उठ रहे थे आखिर टेलीग्राम में क्या था कि भाभी जाने वाली थीं वो तो रुक गईं और ससुर जी ने मुझे विदा कर दिया। उसने ने एक दो बार रास्ते में श्याम से पूछने की कोशिश भी की पर श्याम ने यही कहा कोई खास नहीं शायद तुम्हारे माँ की तबियत ठीक नहीं।  श्याम और सुधा सुबह सुबह बोकारो पहुँच गए सुधा ने जैसे ही गेट खोला माँ सामने ही बरामदे में बैठी मिली। सुधा ने माँ के पैर छूकर प्रणाम करते हुए पूछा तुम्हे क्या हुआ है .............? माँ आश्चर्य से बोली मुझे............ ? मुझे तो कुछ नहीं हुआ है, सुधा ने पूछा और बाबूजी ? तबतक सुधा के बाबूजी भी बाहर आ गए आते ही कहा आ गए तुम लोग? सरोज को भी पहले यहीं ले आते, शाम में चली जाती। श्याम बोले वो नहीं आयीं , वो तो माँ की तबियत ख़राब है सुन घर में बाबूजी माँ चिंतित हो गए इसलिए उन्होंने सुधा को तुरंत भेज दिया, भाभी बाद में आएंगी पर माँ तो कह रही हैं उन्हें कुछ नहीं हुआ पर आपके टेलीग्राम .........सुधा के पिताजी ने कहा अब समझा ............. मैंने जो टेलीग्राम किया थ यह उसी का कमाल है. दरअसल सुधा की चिट्ठी देख मुझे लगा अब चिट्ठी भेजने से समय पर नहीं मिल पायेगा इसलिए Send Sudha with Shyam टेलीग्राम कर दिया था. लगता है उसी का मतलब लोगों ने लगाया कि तुम्हारी माँ की तबियत ठीक नहीं है . सुधा के पिताजी ने इतना कहा ही था कि चाचा को गेट खोलते देख आश्चर्य हुआ साथ में सुधा की दादी भी थीं. दादी को देख सभी आगे बढे...... दादी ने सुधा की माँ को देखते ही पूछा बहु को क्या हुआ है. सुधा की माँ पांव छूते हुए बोलीं माँ मैं बिलकुल ठीक हूँ मुझे कहाँ कुछ हुआ है.  सभी हंस पड़े सुधा झेंप गई ........ 


 

  


कैसे बीते दिन



कैसे बीते दिन कैसी है रातें 
हम किस तरह से कहे मन की बातें 
कैसे  बीते दिन...................
कहे उनसे कोई है लंबी ये रातें 
करवटें बदल रही है थकती निगाहें 
कैसे बीते दिन....................
वो जन्मों की कसमे यादों में आये
रही मन में कसकें न वादे निभाए 
कैसे बीते दिन ...................
ढूंढें निगाहें अब भी वो चाहे
वो नज़रों का मिलना कैसे भुलाएं 
कैसे बीते दिन .....................
अंजुम निहारें है कोई क्या उनसा
मगर मिल न पाए जो उनसे हो मिलता 
कैसे बीते दिन ..........................

मीत सँग हो भोर

 "मीत सँग हो भोर"

जीवन जीने की कला, मिला तुम्ही से मीत।
अब आकर इस मोड़ पर, बढ़ा और भी प्रीत।।

गहरे होते भाव जो, वो‌ उतने  गंभीर।
बिनु बोले जो कह गए, नैनो की तासीर।।

ह्रदय सदा ही ढूँढता, मिलने का संयोग।
कहने को तो बहुत पर, कैसे सहूँ वियोग।।

स्त्रोत प्रेरणा का मिला, वही सृजन का हार।
दिशा दिखाया आपने, बहुत बड़ा उपकार।।

मन-दर्पण को देखकर, होते भाव विभोर।
कुसुम हृदय की कामना, मीत संग हो भोर।।

©कुसुम ठाकुर