आई शरण तुम्हारी




" आई शरण तुम्हारी "

हरि मैं तो हारी, आई शरण तुम्हारी,
अब जाऊँ किधर तज शरण तुम्हारी 


दर भी तुम्हारा लगे मुझको प्यारा,
 तजूँ  कैसे अब मैं शरण तुम्हारी 
हरि ..................................


मन मेरा चंचल, धरूँ ध्यान कैसे,
बसो मेरे मन मैं शरण तुम्हारी  
हरि ...................................


जीवन की नैया मझधार में है 
पार उतारो मैं शरण तुम्हारी
हरि ................................ 


तन में न शक्ति, करूँ कैसे भक्ति 
अब दर्शन दे दो मैं शरण तुम्हारी 
हरि .....................................

- कुसुम ठाकुर - 

5 comments:

Shalini kaushik said...

.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार मृत शरीर को प्रणाम :सम्मान या दिखावा .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

गीतिका वेदिका said...

नम्र प्रार्थना ..सुंदर वचन। शुभकामनायें आदरणीया कुसुम दी!
आपका आशीर्वाद मिले यहाँ http://getvedika.blogspot.in/

सादर
गीतिका 'वेदिका'

Kusum Thakur said...

आभार शालिनी जी,गीतिका.

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

प्रभु के चरणों में ही सच्चा सुख है ..मन को चूने वाली रचना

शिवनाथ कुमार said...

प्रभु के चरणों में सुन्दर वंदन रूपी पुष्प अर्पित किया है आपने ...