नहीं समझे?


"नहीं समझे"


दुखी करना नहीं जानूँ, मगर दुःख तुम नहीं समझे
उलझना क्यों है शब्दों में, अभी तक तुम नहीं समझे  


मेरी उलझन मेरी बातें, न खुद समझी यही गम है
मैं चाहूँ पर मेरी चाहत, अभी तक तुम नहीं समझे


इशारे भी चिढाते हैं, करूँ फिर व्यक्त मैं कैसे 
है जीना मूक बनकर क्यों, न सोचा जो वही समझे 


है कहने को बहुत कुछ पर, यहाँ बंदिश नहीं कम है 
हिलोरें दिल की समझूँ पर, थपेड़ों को नहीं समझे 


निगाहें तुम न फेरोगे, सदा विश्वास है मुझको
अहम तेरी सदा खुशियाँ, ये उलझन भी नहीं समझे


जुदाई हो तो रूठे रब, कठिन होता बहुत सहना
मिलन में सुख तो होता है, तड़प को क्यों नही समझे


दिशा का ज्ञान मिलते ही, रहूँ संज्ञान मैं हरदम
इशारों से कहूँ कैसे कुसुम को भी नहीं समझे


 -कुसुम ठाकुर- 

9 comments:

मीनाक्षी said...

मेरी उलझन मेरी बातें, न खुद समझी यही गम है
मैं चाहूँ पर मेरी चाहत, अभी तक तुम नहीं समझे

पूरी रचना बहुत कुछ कहती सी... लेकिन कुछ खास पंक्तियाँ मुखर हो सामने आ जाती हैं...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत कुछ मन के भावों को व्यक्त करती खूबसूरत गज़ल

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब कुसुम जी - वाह - एक त्वरित शेर मेरे तरफ से भी इसी गोत्र-मूल के

समझकर जो न समझे तो समझदारी सुमन कैसी
है समझाया इशारों में अभी तक तुम नहीं समझे

सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

anuradha srivastav said...

इशारे भी चिढाते हैं, करूँ फिर व्यक्त मैं कैसे
है जीना मूक बनकर क्यों, न सोचा जो वही समझे
कुसुम जी बेहतरीन रचना वैसे पहले भी कई बार आपको पढा है पर इस रचना का प्रवाह व भावाभिव्यक्ति सशक्त है।

Divya Narmada said...

achchhee rachna. badhaee. ab apki kalam dheere-dheere manj rahee hai.

vandana gupta said...

दुखी करना नहीं जानूँ, मगर दुःख तुम नहीं समझे
उलझना क्यों है शब्दों में, अभी तक तुम नहीं समझे

इशारे भी चिढाते हैं, करूँ फिर व्यक्त मैं कैसे
है जीना मूक बनकर क्यों, न सोचा जो वही समझे
है कहने को बहुत कुछ पर, यहाँ बंदिश नहीं कम है
हिलोरें दिल की समझूँ पर, थपेड़ों को नहीं समझे
जुदाई हो तो रूठे रब, कठिन होता बहुत सहना
मिलन में सुख तो होता है, तड़प को क्यों नही समझे


बेहद दर्द ही दर्द भरा है और साथ एक शिकायत भी ………शायद उस जग नियन्ता से…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल पेश की है आपने!
अब यहाँ आते रहेंगे!

रजनीश तिवारी said...

निगाहें तुम न फेरोगे, सदा विश्वास है मुझको
अहम तेरी सदा खुशियाँ, ये उलझन भी नहीं समझे
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना है...

Vivek Jain said...

खूबसूरत गज़ल
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com