मेरा साथी


"मेरा साथी"

 मुझे मिला एक साथी
जिस पर थी न्योछावर
रात दिन मैं उसकी
सपनों मे रहती थी डूबी
एक तो वो विद्वान
और मैं अनपढ़ नादान
दूजे मैं ऐसी प्रतिभा
न देखी फिर
सुनी तो फिर भी कभी कभी
पर जब तक उसके मोल को
मैं समझ और सहेज पाती
वह देकर धोखा मुझे
चला गया किसी और देश
जहाँ से न कोई लौटा है
और ख़बर ही भेजा है ।

 -कुसुम ठाकुर -

4 comments:

vandana gupta said...

दर्द की अनुभूत पीडा का मार्मिक चित्रण्।

केवल राम said...

जीवन का सत्य यही है लेकिन व्यक्ति हमेशा इन सत्यों को नजरंदाज करता है ...दर्द को अभिव्यक्त करती हुई रचना ...आपका आभार

Neeraj said...

मार्मिक

priyankaabhilaashi said...

सुंदर चित्रण..!!