चलने का नाम ही जीवन है .

 " चलने का नाम ही जीवन है "

गैरों से उम्मीद नहीं थी, अपनो ने जख्म दिया मुझको ।
चाहत कैसी तलबगार की, नेह सुधा न मिला मुझको ।।

सुख दुःख की आँख मिचौनी भी, शिरोधार्य किया मैंने ।
जीवन की हर सच्चाई से , साक्षात्कार न हुआ मुझको।।

चलने का नाम ही जीवन है, बस उसका अलख जगा बैठे ।
छोर निकट आया मंजिल की, ना आभास हुआ मुझको ।।

सिद्धांत कभी जो मन में बसा, उसे आज निभाना कठिन सही
क्या मार्ग उचित है, प्रगति भी हो, या यूँ ही भरमाया मुझको।।

है कुसुम नाम उत्सर्गों का , रहे उचित ध्यान सत्कर्मों से ।
कामना करूँ हर पल उससे , अभिमान कभी न छुए मन को ।।

- कुसुम ठाकुर -

कलकत्ता से उड़ान का अनुभव !!

वैसे तो मुंबई या दिल्ली से ही मैं अक्सर अमेरिका के लिए फ्लाइट  लेना पसंद करती हूँ पर  अक्सर लोगों से सुनती थी कलकत्ता पास है इसलिए उन्हें कलकत्ता से ही उड़ान (फ्लाइट) लेने में सुविधा होती है । करीब करीब मेरे सारे सम्बन्धी और दोस्त कलकत्ता से ही फ्लाइट लेते हैं  इस बार जब अनु ऑन लाइन टिकट ले रही थी तो मुझसे पूछी कहाँ से आप फ्लाइट लेना पसंद करेंगी.........और उस समय मेरे मन में आया क्यों न एक बार कलकत्ता से उड़ान ली जाय । कलकत्ता से मात्र एअर इंडिया की उड़ाने ही नन स्टॉप हैं। अनु ने देख कर बताया कि तीन उड़ाने कोलकाता से  न्यू यार्क की थी जो दिल्ली में मात्र रूकती थी और उसके बाद सीधा न्यू यार्क मैं ने शाम की उड़ान लेने का फैसला लिया जो कि ५ बजे शाम में कलकत्ता से उड़ती है और सुबह ६ बजे न्यू यार्क पहुँच जाती है । 


टिकट देखी तो पता चला दिल्ली में करीब पाँच घंटे रुकना पड़ेगा । मेरा सामान कलकत्ता में ही चेक इन होना था यह तो टिकट ही बता रहा था और कलकत्ता तक की उड़ान भी डोमेस्टिक (घरेलू) थी यह टिकट संख्या से लग रहा था। मुझे भी लगा और सबने कहा भी अगर कलकत्ता तक की उड़ान घरेलू है तो मैं बाहर भी जा सकती हूँ। मुझे लगा बहुत दिनों से मेरा एक भाई जो कि गुडगाँव में ही रहता है, घर आने कह रहा था अच्छा है उसे ही खबर कर दूंगी आकर ले जायेगा और एक डेढ़ घंटे उसके साथ बिताकर फिर वापस आ जाउंगी। चेक इन का झंझट तो था ही नहीं। इस आशय से कि पूरी तरह और सही जानकारी मुझे एअर इडिया के ऑफिस से ही मिलेगा मैं उसके टोल फ्री  नंबर पर फ़ोन की और टिकट का पूरा व्योरा फ़ोन पर बता उनसे पूरी जानकारी माँगी । जिसने फ़ोन उठाया था उसने जानकारी देते हुए कहा ......मुझे अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनल में ही ही चेक इन करना है इसलिए बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता । यह सुन मैं बाहर जाने का इरादा छोड़ दी। चलने से दो दिनों पहले मैं अपने सीट और उड़ान की पुष्टिकरण के लिए एअर इडिया के ऑफिस में फोन की वहाँ उपस्थित एअर इंडिया के अधिकारी ने उस दिन भी पुष्टि करते हुए बताया कि.....मेरी उड़ान अन्तराष्ट्रीय टर्मिनल से है ।  


२५ जून को ५ बजे शाम में मेरी उड़ान थी। जमशेदपुर से कलकत्ता जाने  के रास्ते में ही झारग्राम पड़ता है , जहाँ २७ मई को जनेश्वरी एक्सप्रेस दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी । रेल यातायात की अनियमितता और अन्तराष्ट्रीय उड़ान होने की वजह से मैंने सुबह की ट्रेन से कलकत्ता जाने का निर्णय लिय़ा। १:४५ दिन में कलकत्ता का नेताजी सुभाष अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँची। 


जैसे ही मैं सुभाष चन्द्र बोस अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा के गेट के पास पहुँची अपना सामान ट्रॉली पर रख अपना पास पोर्ट और टिकट निकाल ली ....सी आइ एस एफ के सिपाही को गेट पर देख अपनी टिकट और पास पोर्ट उसे जाँच के लिए थमा दी। टिकट देख आश्वस्त हो उसने मुझे भीतर जाने दिया । भीतर वाला गेट भी बंद था और वहाँ भी दो सिपाही खड़े थे उन्होंने मुझसे उड़ान संख्या पूछी। और जैसे ही मैं उन्हें उड़ान संख्या बताई कहने लगे यह उड़ान यहाँ से नहीं है....।  मेरे हाथ में टिकट थी पर वे कह रहे थे वहाँ से नहीं है खैर उसी समय एक और व्यक्ति जो उसी हवाई अड्डा का अधिकारी प्रतीत होता था उसने मुझसे उड़ान संख्या पूछी और बहुत सोचने के बाद उसने बतया कि वह उड़ान संख्या शायद डोमेस्टिक टर्मिनल से हो । 


कलकत्ता का दोनों टर्मिनल बिल्कुल आस पास है, ट्रॉली लेकर मैं सीधा दूसरे टर्मिनल पर पहुँच गई और टिकट दिखा सीधा एअर इंडिया के ऑफिस यह सोच पहुँच गई कि पहले यह तो पता करूँ मेरी उड़ान आखिर है किस टर्मिनल से। वहाँ ऑफिस में एक महिला और एक पुरुष अधिकारी मिले उनसे मैं अपनी उड़ान संख्या बताकर पूछी....मेरी उड़ान आखिर कहाँ से थी....पर हाय रे एअर इंडिया के कर्मचारी.... उन्हें पता ही नहीं था कि उस संख्या की कोई उड़ान भी है। मेरा सब्र अब टूट चुका था और मैं उनसे गुस्से में बातें कर रही थी ....मैं उनसे कह रही थी अगर यह उड़ान संख्या है ही नहीं तो फिर यह टिकट मुझे कैसे दी गई है .....उसी समय हमारे वार्तालाप को सुन भीतर से एक अधिकारी आए और वे मुझसे मेरी परेशानी का कारण पूछने लगे .....मैं उन्हें अपनी टिकट दिखा अपनी परेशानी का कारण बताई। मेरी टिकट देखते ही उन्होंने कहा कि...मेरी उड़ान उसी टर्मिनल से थी यानि डोमेस्टिक टर्मिनल से। उन्होंने खुद ही मुझे चेक इन काउंटर तक पहुँचा दिया साथ ही असुविधा के लिए खेद भी प्रकट करते हुए कहा .. .sorry madam for the inconvenience अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया this is called Air India.


चेक इन काउंटर पर मैं अपनी टिकट और पास पोर्ट वहाँ उपस्थित अधिकारी को देते हुए जब पूछी कि मेरे दोनों बोर्डिंग पास वहाँ मिलेगा या नहीं... तो उसने मुझे जवाब दिया वह इंडियन एअर लाइंस का स्टाफ था अब चूंकि दोनों का विलय हो चुका है इसलिए वह काम तो कर रहा है पर उसे सारी बातें मालूम नहीं है। यह कह वह बगल के काउंटर से किसी को बुलाया और पूछने के बाद मुझे दोनों बोर्डिंग पास दिया । खैर किसी तरह मुझे बोर्डिंग पास भी मिला और उड़ान भी समय पर थी


अंततः हमें दिल्ली के इन्द्रा गाँधी अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा के डोमेस्टिक टर्मिनल पर ही ले जाया गया और वहाँ से फिर अन्तराष्ट्रीय टर्मिनल मैं समय से ५ घंटे पहले पहुँच गई थी और वह समय एअर इंडिया वालों की मेहरबानी से बैठकर बिताना पड़ा । यात्रा शुरू होने से पहले ही मैं थक चुकी थी


क्या यही कलकत्ता हवाई अड्डा और एअर इंडिया की व्यवस्था है। क्या यही है एअर इंडिया के कर्मचारियों और अधिकारियों की कार्य प्रणाली जिसके लिए आए दिन वे तनख्वाह और सुविधा बढाने के लिए हड़ताल करने की धमकी देते हैं ? 

न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको

"न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको" 

न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको  
फिर कैसी ये प्रीत, बतलाऊँ किसको?

लगी कैसी लगन, रहूँ मैं यूँ मगन 
धरूँ ध्यान किसीका , पाऊँ मैं तुझको

क्या है तुम में वो, बात जपूँ दिन रात
कहूँ कैसे न मैं, समझूँ मैं तुमको

कहो तुम जो वही, लगे मुझको सही
क्यों न करूँ विश्वास, है अगन मुझको

मिला जब से है मीत, रुचे सब रीत
देखूँ उसे भी न तो, जँचे उसको

- कुसुम ठाकुर -