एल टोरो झूले पर बस भगवान ही मालिक हैं अब
मैं जब भी अमेरिका आती बहन के बच्चे और बेटा सिक्स फ्लैग्स का नाम बड़े ही उत्सुकता से लेते और (Six Flags) चलने को कहते पर मेरी इतनी हिम्मत कहाँ जो मैं उन गगन चुम्बी और दिल को दहलाने वाले झूलों पर जाती . बल्कि मेरा वश चलता तो उन्हें भी नहीं जाने देती . मुझे याद है पहली बार जब हम दिल्ली गए थे . बच्चे बहुत छोटे थे , पति को बच्चों के साथ अप्पू घर जाने का शौक था . पति ने जाते ही, जितने झूले थे सबकी टिकट ले लिय़ा . पहले झूले का नाम ड्रैगन था (Dragon) . सबसे आगे अजगर का मुँह बना हुआ था और पीछे उसके सीट थे . उस झूले पर जब हम सवार हुए उस समय यह बिल्कुल ही अंदाजा ही नहीं था कि उसकी सवारी हमें रोमांचित करेगा या फिर डरूँगी. हम चारों बैठ गए और जैसे ही वह गतिमान हुआ लगा मैं एक तरफ फिसली जा रही हूँ . मैं जोर से दोनों हाथों से सामने के लोहे को पकड़ ली, पर तब भी लगता था एक तरफ फिसल रही हूँ मन होता था जोर जोर से चिल्लाऊं रोको .....रोको पर किसी तरह तीन चक्कर लगा वह अजगर के मुँह वाला झूला रुका और मेरे जान में जान आई . बच्चे बहुत खुश थे उन्हें बहुत मज़ा आया था, मेरे पति भी खुश थे . मैं बोलूं तो क्या बोलूं पर मैं धीरे से बोली अब मैं किसी झूले पर नहीं जाऊँगी . "हाथ दर्द कर गया मेरा",यह कह अपनी दोनों हाथों की तरफ ज्यों ही नज़र डाली दोनों बिल्कुल काले पड़े हुए थे . दरअसल मैंने इतने जोरों से सामने वाले लोहे को पकड़ी थी की नाखूनों से मेरी तलहत्थी काले पड़ गए थे . उसके बाद उस दिन क्या मैं उसके बाद कभी किसी झूले पर नहीं बैठी .
हर बार की तरह इसबार भी सिक्स फ्लैग की बात उठी और मैं बस इतना ही बोली चलो चलूंगी बहुत सुनी हूँ इसका नाम और इतने बड़े बड़े झूले हमारे यहाँ तो हैं नहीं इसलिए देख तो लूं . टिकट नेट पर ही बेटे ने ले लिया . ज्यों ही हम सिक्स फ्लैग्स के नजदीक पहुँचे जो पहला झूला दिखा उसे देख तो अचंभित अवश्य हुई उस करीब ३०० फूट ऊँचे झूले को देखने के बाद और मन में दृढ निश्चय कर ली कुछ हो जाए मैं उन झूलों पर चढ़ने की सोचूंगी भी नहीं . गेट के भीतर पहुँच विक्की और अनु ने तय किया किस झूले पर पहले जाना है . पहला झूला जिसकी सवारी सबसे पहले करना था उसका नाम था सुपर मैन . लम्बी क़तर लगी हुई थी उस कतार में हम भी लग गए . मुझे तो झूला पर नहीं जाना था पर विक्की अनु ने कहा जहाँ से लोग झूले पर चढ़ रहे हैं वहाँ तक चलो . अतः मैं भी कतार में लग गई . ऊपर की ओर सर उठा झूले को देखी ....मेरे मुँह से निकल गया हे भगवान यह झूला तो बिल्कुल उलटा ही जा रहा है . सबके पूरा का पूरा बदन सीट में बाँधा हुआ और उलटा जमीन की ओर लटके हुए थे . ठीक सुपर मैन को जैसे उड़ते हुए सिनेमा में दिखाता है वैसे ही सब लग रहे थे . जिस जगह हम कतार में खड़े थे उस जगह से झूले की रफ़्तार और लोगों की प्रतिक्रया साफ़ साफ़ दिख रही थी . ज्यों ज्यों हम झूले के पास पहुँचते जा रहे थे विक्की मुझे समझाने में लगा हुआ था ताकि मैं झूले पर सवारी करने को तैयार हो जाऊँ . जितनी बार विक्की और अनु कहते "कुछ नहीं है चलिए मज़ा आएगा". मैं उतनी बार ऊपर की ओर देखती और लोगों को हँसते देख थोड़ा साहस बढ़ता. मैं कतार में आगे की ओर बढ़ तो रही थी पर मन में हो रहा था हमारी बारी जल्दी न आए . मैं लगातार सर को ऊपर की ओर उठा झूले पर सवार लोगों को देख रही थी . कितनी बार तो मैं ऊपर देखती रह जाती और जब लोग आगे बढ़ जाते तब विक्की अनु की आवाज पर मैं भी आगे की ओर बढती .
इसी प्रकार हम उस झूले के प्लेटफार्म तक पहुँच गए . एक बार में २० लोग ही जा सकते थे और एक कतार में ४ कुर्सियां थीं और सभी अपने अपने परिवार के साथ बैठ रहे थे . वहाँ भी जबतक हमारी बारी आती तबतक कई बार झूला लोगों को सवारी करा आ चुका था . मैं गौर से सबके चेहरों की तरफ उनके भावों और प्रतिक्रियाओं को देख रही थी . कुछ सहस बटोर रही थी क्यों कि विक्की अनु और मोनी तीनो ही कह रहे थे चलिए यह कुछ नहीं है, मज़ा आएगा . जब हमारी बारी आई तब भी मेरा मन हुआ पार कर वापस चली जाऊं और विक्की को बोली भी, पर उसने जिद्द की और मेरी कुछ न चली . अंत में डरते डरते जाकर उस झूले पार बैठ गई .
एक कतार में चार कुर्सियां थीं पहला छोड़ मैं बैठी बगल में अनु और उसके बगल में विक्की . कुर्सी तो बहुत ही आराम दायक थी साथ में पैर रखने की जगह बनी हुई थी साथ ही हाथ पकड़ने की भी सुविधा थी . पर मन में एक डर लग रहा था जब कुर्सी को उल्टा करेगा तब कहीं मैं चिल्ला न दूँ . खैर वहाँ के कर्मचारी आकर सबकी कुर्सियों को बारी बारी से देख रहे थे ठीक से बंद है या नहीं . मैं तीन बार अनु से बोली अनु देखो ठीक से बंद है . अनु देखकर तीनो बार बोली हाँ तो मन में थोड़ी तसल्ली हुई चलो बंद तो है . अचानक कुर्सी उलटी हो गई और हम सुपर मैं बन गए . जान में जान आई जिस तरह की कल्पना की थी उतना बुरा नहीं लग रहा था . झूला हम जैसे सुपर मैन को लेकर आगे बढ़ा और अब जमीन साफ दिख रही थी . झूला बहुत धीरे धीरे आगे की ओर बढ़ रहा था और मैं एक बार जय बजरंगबली कहती और दूसरी बार जय भोला नाथ. कहते है बजरंगबली सबसे ताकतवर हैं इसलिए सुपर मैन बन तो गई थी, पर ताकत के लिए बजरंगबली को याद कर रही थी और कह रही थी आज तुम ही बचाना इस सुपरमैन को . भोलेनाथ को इस विपत्ति में कैसे छोड़ देती अतः बार बार जय भोले नाथ कह अपनी प्रार्थना उनतक पहुँचने की कोशिश कर रही थी . अचानक झूले की गति बढ़ गई और मुझे कुछ भी याद नहीं उस समय मेरे मन में क्या आया . मैं तो अपनी दोनों आँखें जोड़ से बंद कर ली और इतंजार थी कब झूला रुके और मैं सकुशल जमीन पर लौटूं . वह समय आया और हमारा झूला जमीन पर रुका और हमें बंधन मुक्त किया गया . बेटे ने उतरते के साथ पूछा कैसा लगा मैं कह दी ज्यादा डर नहीं लगा अच्छा ही लगा . सुपरमैन बनकर जो लौटी थी, कैसे कहती डर लग रहा था . उन सारे झूलों का सवारी करते हुए सबकी फोटो ली जाती है और जिन्हें चाहिए वे पैसे दे ले सकते हैं . हम भी अपनी फोटो देखने पहुँच गए . पर मैं बहुत मायूस हो गई इतनी बहादुरी के कार्य जीवन में पहली बार की थी पर फोटो में मेरा चेहरा जरा भी नहीं दिख रहा था, बाल से मेरा पूरा चेहरा ढका हुआ था . वह फोटो लेकर क्या करती जब चेहरा ही नहीं दिख रहा था .
सुपर मैं बनाए के बाद मेरी हिम्मत नहीं थी किसी और झूले पर सवारी करने की फिर भी बच्चों की जिद्द पर एक दो छोटे झूलों पर बैठी . उसके बाद सबसे ऊँचे झूले की बारी आई और वह देख मैं नहीं जाने की जिद्द कर दी और वहाँ भी प्लेटफार्म तक गई और बच्चे सवारी पर गए और मैं वहीँ खड़ी रही .
अब बारी आई जिस झूले की उसका नाम था "एल टोरो" यह झूला भी देखकर ही डरावना लग रहा था . खुले आसमान में २०० फुट की उंचाई से कम यह भी नहीं था और लम्बाई बहुत ज्यादा थी इसकी . इस झूले में ६-७ जगह ऐसे थे जहाँ झूला सीधा खडा जाती थी और वहाँ से बस सीधा नीचे को आती थी वह भी तेज़ रफ़्तार से . यहाँ मैंने कितना भी कहा मैं नहीं जाऊँगी ...पर विक्की अनु नहीं माने . उनका कहना था यह झूला सुपर मैन के सामने कुछ भी नहीं था अर्थात बहुत आसन आसान था . विक्की ने जिद्द कर दिया और मैं साहस जुटाकर फिर सूली पर चढ़ गई .
इस बार दो लोगों के बैठने के लिए ही कुर्सी थी. तय हुआ मैं और अनु एक साथ बैठेंगे विक्की अकेला बैठेगा और मोनी आशीष एक साथ . खैर जब सर ओखली में डाल ही दी थी तो फिर अकेले बैठूं या दुकेले क्या फर्क पड़ता है . बजरंगबली को फिर याद कर झूले पर बैठ गई . इसबार सुपर मैन की तरह कुर्सी नहीं थी . बिल्कुल सीधा बैठना था और झूला की सवारी बिलुक सीधा तय करना था . खैर बैठी और बेल्ट ठीक से बाँध ली और अनु ने भी देख लिय़ा बेल्ट ठीक से बंधा था या नहीं. अभी अभी बहादुरी का झंडा गाड़कर आई थी .......एक बार मेरे भी मन में आया ......अरे यह तो सच में सुपर मैन से आसन झूला है . पर ज्यों ही खुले आसमान की ओर मेरी नज़र गई मन हुआ वहाँ से वापस भाग जाऊं . पर अब उसकी सम्भावना नहीं बची थी . हमारा झूला हमारे जैसे १६ बहादुरों को ले धीमी गति से अपने गंतव्य की ओर निकल पड़ी थी . मेरे मन में आया मैन आकाश की ओर देखूंगी ही नहीं ...और न ही नीचे की ओर . बस सामने देख रही थी उस समय एक क्षण के लिए लगा यह सच में उतना भयावह नहीं था जितने की मैन कल्पना की थी . अचानक हमारा झूला बिल्कुल सीधी चढ़ाई करने लगा और कुछ ही क्षणों में ऊपर आ उसकी गति और कम हो गई. मेरी आंखे खुली और मैं एक बार जय बजरंगबली और एक बार जय भोले नाथ का जाप कर रही थी . अचानक झूले का किनारा नज़र आया और मेरी नज़र नीचे की ओर गई . मेरे मुँह से भगवान का नाम भी जाता रहा . अचानक लगा मैं आगे की ओर फिसल रही हूँ और मैं अपने हाथों से सामने वाले लोहे को जो पकड़ने के लिए ही थी को और जोरों से पकड़ ली . अब हम नीचे की ओर जा रहे थे पर मेरी ऑंखें बिल्कुल ही बंद और सर ऊपर आकाश की ओर . उसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं है ...बस लग रहा था कैसे झूला जल्दी रुके . पर झूला वैसे वैसे ५-६ और चढ़ाई पर बारी बारी से सफलता प्राप्त करने के बाद हमें हमारी जान के साथ सकुशल प्लेटफार्म पर वापस ला दिया . उस दिन तो हमने सिक्स फ्लैग्स गाड़ दिए पर अब यदि कभी बच्चे सिक्स फ्लैग्स की सैर को भी कहेंगे तो मैं बीमार होने का बहाना कर लुंगी .