" चलने का नाम ही जीवन है "
गैरों से उम्मीद नहीं थी, अपनो ने जख्म दिया मुझको ।
चाहत कैसी तलबगार की, नेह सुधा न मिला मुझको ।।
सुख दुःख की आँख मिचौनी भी, शिरोधार्य किया मैंने ।
जीवन की हर सच्चाई से , साक्षात्कार न हुआ मुझको।।
चलने का नाम ही जीवन है, बस उसका अलख जगा बैठे ।
छोर निकट आया मंजिल की, ना आभास हुआ मुझको ।।
सिद्धांत कभी जो मन में बसा, उसे आज निभाना कठिन सही
क्या मार्ग उचित है, प्रगति भी हो, या यूँ ही भरमाया मुझको।।
है कुसुम नाम उत्सर्गों का , रहे उचित ध्यान सत्कर्मों से ।
कामना करूँ हर पल उससे , अभिमान कभी न छुए मन को ।।
- कुसुम ठाकुर -
गैरों से उम्मीद नहीं थी, अपनो ने जख्म दिया मुझको ।
चाहत कैसी तलबगार की, नेह सुधा न मिला मुझको ।।
सुख दुःख की आँख मिचौनी भी, शिरोधार्य किया मैंने ।
जीवन की हर सच्चाई से , साक्षात्कार न हुआ मुझको।।
चलने का नाम ही जीवन है, बस उसका अलख जगा बैठे ।
छोर निकट आया मंजिल की, ना आभास हुआ मुझको ।।
सिद्धांत कभी जो मन में बसा, उसे आज निभाना कठिन सही
क्या मार्ग उचित है, प्रगति भी हो, या यूँ ही भरमाया मुझको।।
है कुसुम नाम उत्सर्गों का , रहे उचित ध्यान सत्कर्मों से ।
कामना करूँ हर पल उससे , अभिमान कभी न छुए मन को ।।
- कुसुम ठाकुर -