तब और अब

पहले भी जाती थी
शादी ब्याह शुभ कार्यों में
आज भी जाती हूँ
अन्तर सिर्फ़ इतना है
पहले मैं सबसे आगे रहती थी
आज सबसे पीछे
पहले लोग मुझे
सौभाग्यवती कहते
आज सौ को हटा
भाग्यवती भी नहीं कहते
कहते हैं तो बस
इसमे हर्ज़ ही क्या है
यह कर लो वह कर लो
सब कर लो यह न कहता कोई।

- कुसुम ठाकुर-

8 comments:

संगीता पुरी said...

एक विधवा के मन की पीडा की सहज ढंग से अभिव्‍यक्ति करती हुई रचना .. बहुत बहुत बधाई !!

ओम आर्य said...

kabhi aise wishayo par padhane ko nahi milata aapne sahi vishay ko uakera hai jo samaaj ki jad mansikata ki den hai............

Anonymous said...

संगीता जी, मगर ये शब्द ही क्यूँ आया "विधवा"?
वस्तुतः ये समाज के दोहरे चरित्र का हिस्सा मात्र है जो कदम कदम पर नारी को नारी होने का एहसास करता है.
एक ऐसा चरित्र जिसके होने में भी और ना होने में भी उसी का दोष,
कुसुम जी के शब्द ह्रदय को विचलित करते हैं.

Vidya Mishra said...

Didi ,
I am not very much happy about it ....trust me not at all !!!
B'cos we never diffrentiate , and never felt like that ....
We still feel that LPT is around us ....watching , caring us !!!
You know that your position , yr place no one can take ...whatever it might be .....

Please stop thinking all these ....
Your blessings are always welcome ...whether in marriage or any ...auspicious occassion .

You are the same ...our DIDI !!!
:)
Binny

pushpa said...

kusum hamesha khushboo deti hai
tab ho ya aab phool to hamesha muskurate hai.

pushpa said...

kusum hamesha khushboo deti hai
tab ho ya aab phool to hamesha muskurate hai.

pushpa said...

kusum to hamesha khushboo deti hai tab ho ya aab phool to hamesha hi muskurate hai .

Kusum Thakur said...

अपने अपने विचार व्यक्त करने के लिए सभी को मेरा धन्यवाद.
खास कर रजनीश जी को जिनके इतने उच्च विचार हैं.