कवि कोकिल विद्यापति (तृतीय)

कवि कोकिल विद्यापति


कहा जाता है कि महा कवि विद्यापति की भक्ति एवं पद की माधुर्य से प्रसन्न हो" त्रिभुवन धारी शंकर"
उनके यहाँ उगना(नौकर) के रूप में उनकी सेवा की।

विद्यापति को उगना जंगल में मिला था और उस दिन से वह विद्यापति की चाकरी करने लगा। एक बार भगवन शंकर उगना के साथ जंगल के रास्ते कहीं जा रहे थे। उन्हें जोरों की प्यास लगी। भगवान शंकर ने पानी पीने की इच्छा उगना के सामने रखी और कहा इस वन प्रदेश में कुँआ और पोखरा तो कहीं मिलेगा नहीं। उगना यह सुनते ही कह उठा कि उसे वहां का कुआँ देखा हुआ था और वह पानी लेने चला गया। कवि जब भी उससे कुछ लेने कहते वह तुंरत लाकर दे देता था जिससे कवि को बहुत आश्चर्य होता। उस दिन पानी पीकर कवि समझ गए कि वह तो गंगा का पानी था और उगना से इसकी चर्चा की। उगना के रूप में भगवन शंकर को तब असली रूप में आना पड़ा। उस समय उन्होंने विद्यापति से वचन लिया कि वे किसी को उनका असली रूप नहीं बताएँगे और जिस दिन बता देंगे उस दिन वह अंतर्ध्यान हो जायेंगे।

एक दिन उनकी धर्मपत्नी ने उगना को कुछ लाने को कहा पर उगना ने लाने में बहुत देर कर दी। ज्यों ही उगना उनके सामने आया वह उसे जलावन वाले लकडी लेकर मारने दौडीं, यह देख विद्यापति के मुहं से निकल गया "यह क्या कर रही हो साक्षात शिव को मार रही हो"। इतना सुनना था कि शिव जी अंतर्ध्यान हो गए। तत्पश्चात कवि जंगल जंगल भटक व्याकुल हो गाते :

उगना रे मोर कतय गेलाह।
कतय गेलाह शिव किदहु भेलाह।।

भांग नहिं बटुआ रुसि बैसलाह।
जोहि हेरि आनि देल हंसि उठलाह।।

जे मोर कहताह उगना उदेस।
ताहि देवओं कर कंगना बेस। ।

नंदन वन में भेंटल महेश।
गौरी मन हखित मेटल कलेश। ।

विद्यापति भन उगना सों काज।
नहि हितकर मोर त्रिभुवन राज। ।

कवि विद्यापति की इन पाक्तियों में व्याकुलता और शिव जी को खोने का दुःख भरा हुआ है। कवि कहते हैं :

हे मेरे उगना तुम कहाँ चले गए। हे शिव यह क्या हो गया, कहाँ चले गए। भांग नहीं है इसलिए शिव मुझसे रूठ गए हैं। ढूंढ कर ला दूँगा तो फिर खुश हो जायेंगे। मुझे तो महेश नंदन वन में मिले थे और उनके आने से गौरी का मन हर्षित हो उठा था सारे क्लेश दूर हो गए थे। अंत में विद्यापति कहते हैं, उगना से काम करवाकर मैंने त्रिभुवन के राजा के साथ अच्छा नहीं किया।




1 comment:

रंजना said...

कुसुम जी , सबसे पहले तो मन हर्षातिरेक से भर गया जब देखा कि आप जमशेदपुर से ही हैं.....

और फिर आपने जो प्रसंग छेड़ा....बस क्या कहूँ......
ऐसे ही हैं हमारे भोले नाथ ...भक्त के घर चाकरी करने से भी उन्हें परहेज नहीं......

yadi ho sake to ranjurathour.gmail.com par sampark kijiyega...