मेरा साथी

मेरा साथी

मुझे मिला एक साथी
थी जिस पर न्योछावर
रात दिन मैं उसकी
सपनों मे रहती थी डूबी
एक तो वो विद्वान
और मैं अनपढ़ नादान
दूजे मैं ऐसी प्रतिभा
न देखी फिर
सुनी तो फिर भी कभी कभी
पर जब तक उसके मोल को
मैं समझ और सहेज पाती
वह देकर धोखा मुझे
चला गया किसी और देश
जहाँ से न कोई लौटा है
और ख़बर ही भेजा है ।

-कुसुम ठाकुर -

6 comments:

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

यही दुनिया का उशूल है स्वार्थ लागी करे सब प्रीति,, बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

अजय कुमार झा said...

क्या बात है...कुसुम जी..चाँद पंक्तियों में आपने कईयों के जीवन की पूरी कहानी कह दी है....अभिव्यक्ति का एक शाश्क्त उदाहरण....लिखती रहे...

Unknown said...

achhi kavita
umda kavita
badhai____________

Deepak Tiruwa said...

aapne suna to hoga
bade logon se milne men zara sa fasala rakhna.
jahan dariya samandar se mila dariya
nahin rahta

के सी said...

आपकी इस कविता पर मुझे बचपन के दिन याद आते हैं जब कुछ भी मन की बात लिखने के लिए कविता का सहारा लेना पड़ता था.

Anonymous said...

प्रेम की अद्वितीय अभिव्यक्ति,
साथी का संबल ही तो है जो आपके पास न होते हुए भी होने का अहसास कराता है और आपको शशक्त बनाता है .

सुंदर और प्रेम पूर्ण अभिव्यक्ती