उस भाई की याद में जिसे मैं कितना मानती थी वह अब उसे नहीं कह पाऊंगी )
"कैसे अब भूलूं मैं तुमको "
हर पल तुमको याद करूं मैं
रूठ गए क्यों मुझसे तुम ?
अब भी गूंजे दीदी दीदी
छोड़ गए क्यों दीदी को
तुम तो हर पल छांव मेरे थे
दूर रहकर भी आस मेरे थे
बचपन की बातें हम करते
अब किससे वो किस्से बाटूं
तुम तो कहते मत जा दीदी
मुझसे पहले क्यों जल्दी थी
जाने को तो मैं बढ़ती थी
पर तुम मुझसे पहले पहुंचे
वह तो सदा मनमानी करता
एक अरज न सुनता मेरी
मां बाबा भी तुमको चाहे
मुझसे पहले गोद उठाए
न भूली बचपन की बातें
कैसे अब भूलूं मैं तुमको
कुसुम ठाकुर-
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