"बनें आधुनिक"
बनें आधुनिक बोलें हर इक बात में
लेकिन मोल चुकाएँ उसके साथ में
यूँ बातों में कहें लोग कुछ भला-बुरा
नहीं मगर यह दिल बदला आघात में
क्या दिन थे जब बैठे हम बिन बात भी
अब फुरसत है कहाँ किसे दिन रात में
खोल कलम दिल के भावों को लिखते थे
अब तो नकली प्रेम दिखे सौगात में
प्रेम सरोवर में ये 'कुसुम' रहे खिलती
जगह न हो कटुता की उसकी बात में।
2 comments:
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.. ...बधाई
प्रशंसनीय
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