मन में झंझावात


मन में झंझावात"

दिल के तहखाने में बीता तनहा सारी रात 
कहती क्यों सावन हरजाई लाई है सौगात

स्नेह का सागर भरा हुआ है, क्यूँ मन में अवसाद 
किसको बोलूँ, रूठूं कैसे,  मन में झंझावात 

तिल-तिल दीपक सा जलता मन, लिए स्नेह की आस 
गुजरी यादें, धुमिल हो गईं, इतनी रही बिसात 

समझूं कैसे देगा निशि-दिन, दिल में चोट हजार
प्रेम की भाषा वे बोले पर, ना समझे जज्बात  

आता मौसम जाता मौसम, जीवन में सौ बार 
कुसुम मौसमी होता क्यूँ, है, समझ न आयी बात 

-कुसुम ठाकुर-

3 comments:

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ,,सादर

kavya-kranti said...

very nice

Subhash said...

Very sweet and touching. Reminds me of the song: "Meri baat rahi mere man me, kuch kah na saki uljhan mei"