(कुछ दिन कुछ पल ऐसे होते हैं जो चाहकर भी भूला नहीं जा सकता, उसी दिन की याद में मेरी यह रचना जिसे लोगों ने भुला दिया।)
"चाहत तुम्हारी फिर से"
चाहत तुम्हारी फिर से मुझको सजा दिया
सोई हुई थी आशा उसको जगा दिया
कहने को जब नहीं थे, सोहबत नसीब थी
खोजा जहाँ मैं दिल से, चेहरा दिखा दिया
ढूँढ़े जिसे निगाहें उजडा वही चमन था
देखा गुलाब सूखा लगता चिढ़ा दिया
चाहत किसे कहेंगे, तबतक समझ नही थी
जब चाहने लगे तो उसने रुला दिया
नव कोपलों के संग में कलियाँ खिले कुसुम की
खुशबू, पराग सब कुछ तुम पर लुटा दिया
-कुसुम ठाकुर-
5 comments:
प्रेम सदा जीवन सुमन जीने का आधार।
नैसर्गिक उस प्रेम का हरदम हो इजहार।।
मन मंथन नित जो करे पाता है सुख चैन।
सुमन मिले मनमीत से स्वतः बरसते नैन।।
भाव देखकर आँख में जगा सुमन एहसास।
अनजाने में ही सही वो पल होते खास।।
जीवन में कम ही मिले स्वाभाविक मुस्कान।
नया अर्थ मुस्कान का सोच सुमन नादान।।
प्रेम-ज्योति प्रियतम लिये देख सुमन बेहाल।
उस पर मीठे बोल तो सचमुच हुआ निहाल।।
प्रेम समर्पण इस कदर करे प्राण का दान।
प्रियतम के प्रति सर्वदा सुमन हृदय सम्मान।।
सुख दुख दोनों में रहे हृदय प्रेम का वास।
जब ऐसा होता सुमन प्रियतम होते खास।।
मान लिया अपना जिसे रहती उसकी याद।
यादों के उस मौन से सुमन करे संवाद।।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (15.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
वाह ,बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता . बधाई
बहुत खुबसूरत भावो की अभिवय्क्ति…।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,मेरी हर्दिक शुभ कामनायें आपको.
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