कई दिनों से उतराखंड की आपदा से लोग जूझ रहे हैं टीवी में देख मन द्रवित हो जाता है। और तब अचानक समाचार में आया राहत बचाव कार्य में लगे हेलिकोप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उफ़……. कैसी विडम्बना है। हे ईश्वर ! उन सैनिकों को किस बात की सजा मिली जो सच में जान जोखिम में डालकर आपदा में फंसे लोगों को बाहर निकाल रहे थे उनके साथ ऐसा अन्याय क्यों? उन सैनिकों को शत-शत नमन।
एक तरफ हमारे देश की सेना बहादुरी एवं तत्परता के साथ जान जोखिम में डालकर उत्तराखंड त्रासदी से लोगों को बचाने में जुटी हुई है दूसरी तरफ हमारे देश के नेता. उन्हें तो यहाँ भी अपना स्वार्थ अपना नाम एवं अपने वोट की पड़ी है . नाम एवं सहानुभूति के चक्कर में आपस में खुलेआम मारपीट कर रहे हैं।
कम से कम तीन-चार वर्षों तक केदारनाथ, बद्रीनाथ, हेमकुंट साहब जैसे पवित्र स्थलों पर लोग नहीं जा पाएँगे। वहां के वासिंदे जिनकी रोजी रोटी पर्यटकों, तीर्थयात्रियों पर निर्भर थी, वे अब क्या करेंगे जैसी गंभीर समस्या जहाँ हो वहां के नेता यह चर्चा कर रहे हैं कि भावी प्रधानमंत्री या वह नेता अबतक प्रभावित क्षेत्र नही पहुंचा। उस नेता की हेलीकाप्टर क्यों उतरी, उसकी क्यों नहीं उतरी .......वगैरह वगैरह। बैंड बाजे गाजे के साथ राहत सामग्री भेजी जा रही है क्या उनके कानों में आपदा में फंसे लोगों की चीख सुनाई नहीं देती।
वाह रे हमारे देश के नेता इनमे अदमीयता नाम की चीज लेस मात्र भी नहीं रही। ऐसे नेता को चुनकर हम देश इनके हाथो मे सौंपते हैं ? जिस देश में ऐसे नेता हों वहां अब भी हम दम भरते हैं कि हम सभ्य और सुसंस्कृत है। सदियों से चली आ रही देश की सभ्यता और संस्कृति क्या यही थी? इसी के नाम पर हम पाश्चात्य सभ्यता को कोसते हैं?
आज के युवा वर्ग से हमारी अपील है वे जागें, एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाएं। वे जहां कहीं भी हैं भेद भाव जाति पांति से ऊपर उठकर अपने देश को इन स्वार्थी गद्दार नेताओं से बचाएं, न कि पार्टी, क्षेत्र, जाति के नाम पर आपस में लड़ें। वे चाहें तो आज हमारे देश को बचा सकते हैं।