"आजादी हमें खैरात में नहीं मिली है उसके लिए हमारे देश के अनेको देश भक्तों ने जान की बाजी लगाकर देश पर मर मिटने की कसम खाई और शहीद हुए. उनके वर्षों की तपस्या और बलिदान से हमने आजादी पाई है ". झंडा के सामने यह हर वर्ष ऐसे बोला जाता है मानो हम प्रतिज्ञा कर रहे हों कि इस देश की खातिर हम भी अपने उन शहीदों की तरह मर मिट सकते हैं जिन्होंने कई सौ वर्षों की गुलामी से हमें आजादी दिलाई है. पर वह भी मात्र औपचारिकता ही होती है. क्या ये वाक्य बोलते समय उनके ह्रदय में जरा भी देश पर मर मिटने की चाहत होती है ? हर वर्ष जो भी झंडोत्तोलन करने आता है, पर उन्हें यह औपचारिकता निभाना होता है इसलिए कह देते हैं.
हम कहते हैं अंग्रेजों कि नीति थी "divide and rule" पर क्या आजके हमारे नेताओं की भी यही नीति नहीं है? वे चाहते हैं कि हमारे युवा वर्ग दिग्भ्रमित रहें और जाति, राज्य, धर्म,भाषा लेकर इतना ज्यादा आपस में उलझे रहें कि उन्हें यह समझने की फुर्सत ही न हो कि वे सोचें कि हमारे देश के नेता क्या कर रहे हैं. सही मायने में हमारा भला कौन कर सकता है देश का भला कौन चाहता है? वैसे मेरी नज़र में एक भी नेता या पार्टी आजके दिन में ऐसा नहीं है जो खुद की भलाई से ऊपर उठकर हमरा, हमारे बच्चों का या देश का भला चाहे.
आज आज़ादी के ६५ साल बाद भी क्या हम आजाद हैं ? और यदि नहीं हैं तो उसका जिम्मेदार कौन है ? क्या हम खुद उसके जिम्मेदार नहीं हैं ? यों तो लोग कहते हैं हमारे चौथे खम्भे की अहम भूमिका होती है पर मेरे हिसाब से हमरा चौथा खम्भा हमारे देश के युवा हैं . जिन्हें उनकी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाना होगा देश के प्रति उनकी अहम भूमिका देश को आज भी हर क्षेत्र में उंचाईयों पर ले जा सकती है. अगर वे दिग्भ्रमित न हों तो उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है. उन्हें समझना होगा कि आज के नेता चाहे किसी भी पार्टी के हों उनका उद्देश्य मात्र होता है गद्दी पर बने रहें चाहे देश को बेच ही क्यों न दें. आज भी हमारा घाव भरा नहीं है और कहते हैं अंग्रेज जाते जाते हमें बांटकर चले गए.
हमारे देश में एक बहुत बड़ी क्रान्ति आई है जिसमे युवाओं का बहुत बड़ा योगदान है या हम कह सकते हैं कि उनकी सोच का ही नतीजा है कि आज वे राज्य, जाति, धर्म भूलकर शादी कर रहे हैं. यही सोच ऐसी ही क्रांति एकबार उनके मन में आ जाए तो हमारे देश से ऐसे नेताओं का सफाया हो जायेगा जो हमें बाँटकर देश पर राज्य करना चाहते हैं. उसके लिए देश के युवाओं को एकजुट होकर क्रान्ति लाना होगा. देश को बचाने के लिए राज्य, भाषा, जाति, धर्म के भेद भाव को छोड़ एक जुट होकर कृतसंकल्प होना होगा. पर आज जब हम राज्य, भाषा, धर्म, जाति के नाम पर टुकड़े टुकड़े हो चुके हैं उसके बावजूद भी हम यदि नहीं चेते तो हमारी आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ़ नहीं करेगी. हमारे इतिहास से सभ्यता और संस्कृति का नामो निशान मिट जायेगा.