"लोकतंत्र बीमार है"
लोकतंत्र बीमार अब, है जनता में रोष।
इक दूजे पर थोपते, अपना अपना दोष।।
बातें जन-हित की करें, स्वार्थ न करते दूर।
आम लोग सच जानते, साथ चले भरपूर।।
आम लोग सच जानते, साथ चले भरपूर।।
जागो देश निवासियों, नहीं हुई है देर ।
बनी रहे बस एकता, दुश्मन होंगे ढेर।।
नहीं गुलामी देश में, फिर भी है संताप।
छोड़ गये अंग्रेज पर, शेष रह गयी छाप।।
प्रकृति नियम हरदम यही, होंगे ही बदलाव।
बहे हवा के संग कुसुम, उससे नहीं लगाव।।
7 comments:
जनतंत्र बीमार है, जनता में है रोष।
आपस में इक दूजे पर, थोप रहे हैं दोष।।
जन-हित की बातें करें, हैं स्वार्थ से न दूर।
है जनता अनभिज्ञ नहीं, साथ वे दें भरपूर।।
अति सुन्दर
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
vikram7: आ,साथी नव वर्ष मनालें......
HAPPY NEW YEAR
Wish you 'HAPPY NEW YEAR'
जागो देश निवासियों, नहीं हुई है देर ।
बनी रहे बस एकता, दुश्मन होंगे ढेर।।
...badiya sandesh..
sach to yahi hai ki yah bimari bahut gahari hai..
bahut badiya rachna
bahut sundar kavita he desh ki kamzori ko chinhit karta ye sandesh hame un kamyon ko dur karne ki parerna deta he ... hardik badhayi
खूबसूरत दोहे...
aapki kavya shakti se prabhavit huva. dohe bahut achchhe hain.
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