तेरा दिया ही लाई हूँ

 

"तेरा दिया ही लाई हूँ"

 हूँ तो माँ इक तुच्छ उपासक,द्वार पे तेरे आई हूँ। 
कैसे कहूँ लोभ नहीं है,सब तेरा दिया ही लाई हूँ। । 

न मैं जानूँ आरती वंदन,स्वर में भी कम्पन मेरे। 
 दर्शन की प्यासी हूँ मैया,इसी उद्देश्य वश आई हूँ। 

बीच भंवर में नाव है मेरी,खेवनहार तुम्ही हो कहूं।  
शरणागत की रक्षा करती,माँ यही गुहार लगाई हूँ।  

मन में मेरे पाप का डेरा,सेवा में अर्पण क्या करूँ।   
तू माता लेती सुधि सबकी,बस यही राग मैं गाई हूँ।   

है मेरा मन चंचल मैया,मन के भाव कहूँ कैसे 
तुमको कहते अन्तर्यामी,इस द्वार पे साहस पाई हूँ।   

-कुसुम ठाकुर-  

9 comments:

अनुपमा पाठक said...

माँ सब सुन रहीं हैं!
सुन्दर रचना!

vandana gupta said...

बस इसी द्वारे से कोई निराश नही जाता और वो तो सब जानती है अन्दर के भावो को। बहुत खूबसूरती से भावो को उकेरा है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत उत्तम सृजन!

देवांशु निगम said...

जयकारा शेरावाली का...बोल सांचे दरबार कि जय...

बहुत ही सुन्दर रचना...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

उत्तम रचना....
सादर...

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-708:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

रविकर said...

मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच

Lokesh kumar jha said...

Very Nice

Lokesh kumar jha said...

very