"किस तरह"
तुमको चाहा है मगर तुमको बताऊँ किस तरह
आँखों में जुबाँ नहीं तो सुनाऊँ किस तरह
भूलकर दर्द जुदाई का ना मिलती खुशियाँ
जफ़ा के आसुओं को अब बहाऊँ किस तरह
भूलना है कठिन बहुत जो पल थे यादों के
वो सभी यादें अभी दिल से मिटाऊँ किस तरह
अगर नहीं है बेबसी तो बेड़ियाँ कैसी
वफ़ा की चाहतें जो दिल में निभाऊँ किस तरह
हर कदम साथ हो कुसुम की ख्वाहिश इतनी
मगर अकेले अब कदम को बढाऊँ किस तरह
-कुसुम ठाकुर-
8 comments:
me aapki is bhtrin rchnaa par tipani karun aakhir kis trah ..bhtrin gzal ke liyen badhaai ..akhtar khan akela ktoa rasjthan
अगर नहीं है बेबसी तो बेड़ियाँ कैसी वफ़ा की चाहतें जो दिल में निभाऊँ किस तरह
बहुत खुबसूरत अहसास , बधाई
भूलना है कठिन बहुत जो पल थे यादों के
वो सभी यादें अभी दिल से मिटाऊँ किस तरह
अगर नहीं है बेबसी तो बेड़ियाँ कैसी
वफ़ा की चाहतें जो दिल में निभाऊँ किस तरह
खूबसूरत गज़ल
आकुलता व्याकुलता का प्रभाव है रचना पर...जो असर छोड़ती है मन पर ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पुनीत पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
सुन्दर भाव कुसुम जी - श्रेष्ठ रचनाओं की तरफ आपके कदम लगातार बढ़ रहे हैं - हार्दिक शुभकामनायें - चलिए मैं भी आदतवश कुछ जोड़ दूँ -
वफ़ा निभाने की चाहत अगर है दिल में सुमन
प्यार के अश्क में कुसुम को डुबाऊ किस तरह
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
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bahut achchha...........
अच्छी ग़ज़ल !
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