कर में हरसिंगार


"कर में हरसिंगार"

श्वेत केसरिया कोमल सुन्दर 
हो तुम सौम्य प्रतीक 
नम्र भाव को देख कर
भक्त हुए नत शीश 

तुमसे महके चारों दिशाएँ 
हो भक्तों के भक्त 
कष्ट भी उनके सोचते 
गिरो भूमि यह रीति 

देख तुम्हारी नम्रता 
हुए भक्त विभोर
भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश

कद में छोटे हो मगर
सौरभ मन को भाए
सूचना आगमन का
फल होगा सुखदाय

तन्मय होकर चुन रही
चेहरे पर मुस्कान
शिव की करूँ आराधना  
कर में हरसिंगार 

-कुसुम ठाकुर- 

11 comments:

श्यामल सुमन said...

एक सुन्दर भाव की रचना कुसुम जी - "हर श्रृंगार" की व्यथा को भी आपने मन दिया.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
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Arun sathi said...

सुन्दर अहसास

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

देख तुम्हारी नम्रता
हुए भक्त विभोर
भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश

बहुत सुन्दर भाव ..नम्रता से बाकी दोष खत्म हो जाते हैं ..

Sunil Kumar said...

देख तुम्हारी नम्रता
हुए भक्त विभोर
भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश
नम्रता से बड़ा कोई गुण नहीं है , सुंदर भाव लिए हुए रचना , बधाई

मनोज कुमार said...

कविता अच्छी लगी। इसके भाव भी।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

हरसिंगार पर बहुत ही भावप्रणव रचना प्रस्तुत की है आपने!

नीरज गोस्वामी said...

हारसिंगार जैसी ही मनोहारी रचना...बधाई स्वीकारें

नीरज

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

kusumji
phoolon ke mamle main bachpan se mera sabse chaheta paudhon me se ek...jeewan ke padav mein jahan thara harsingar lagaya..lekin sac mein kya koi manyata hai..aapne भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश
likha hai..yadi koi jaankari ho to dijiyega..badhaiyi aur apne blog pe nimantran ke sath

अनुपम said...

bahut sundar suman ji..

मीनाक्षी said...

अनायास ही हरी सी कोमल दूब याद हो आई.. बेहद कोमल भाव लिए हुए रचना..

Dr. Shefalika Verma said...

bhumi dokh dekhe nhi....kusum apne nam se mujhe yunhi pyar hai, teri kavita ne bhawon ke nav unmesh khol diye......