"रास्ते मुश्किल पड़ी है"
याद आए जो घडी अब, वो घडी मुश्किल बड़ी है
देख जिसको मुस्कुराऊँ, क्या कोई मुमकिन कड़ी है
हो के विह्वल कह दूँ सारी, बातें दिल की सोचती
बेड़ियाँ भी कम नहीं है, रास्ते मुश्किल पड़ी है
नैन समझे सब इशारे, दर्द सहकर कह न पाए
हो किनारे कह सकूँ पर, वो बहुत नाजुक घड़ी है
तोड़ के बंधन सभी गर, कह सकूँ जज्बात दिल के
क्यूँ लगे आघात दिल को, आंसुओं की ये लड़ी है
है कुसुम की कामना, हर स्वप्न ही तुमसे सजेंगे
मुस्कुराऊँ याद में फिर, भाव की ऐसी लड़ी है
-कुसुम ठाकुर-
8 comments:
बढ़िया ग़ज़ल..
तोड़ के बंधन सभी गर, कह सकूँ जज्बात दिल के
क्यूँ लगे आघात दिल को, आंसुओं की ये लड़ी है
खुबसूरत ग़ज़ल मुबारक हो
बहुत सुन्दर ग़जल!
नैन समझे सब इशारे, दर्द सहकर कह न पाए
हो किनारे कह सकूँ पर, वो बहुत नाजुक घड़ी है
यूं तो पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब हैं | जीवन की वेदना-संवेदना को बखूबी अभिव्यक्त किया है और विचारों की ऊंचाई अनुभवों की नींव पर खड़ी दिखती हैं |
अरे वाह - क्या बात है? बहुत खूब खूब कुसुम जी. अच्छी ग़ज़ल बन पड़ी है. अपनी आदत से मजबूर लीजिए पेश है एक त्वरित शेर आपके ही स्वर में-
उलझनों को ख़त्म करके प्यार में आगे बढ़ो तुम
जिन्दगी छोटी सुमन यूँ व्यर्थ में तू क्यूँ खड़ी है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
तोड़ के बंधन सभी गर, कह सकूँ जज्बात दिल के
क्यूँ लगे आघात दिल को, आंसुओं की ये लड़ी है
वाह!
बहुत सुन्दर|
गज़ल तो अच्छी है ही, भावविह्वल करनेवाली भी है, बहुत सुन्दर, बधाई! कुसुम जी
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