"मन जाने क्या क्या कहता है"
मन तो प्रतिपल ही बहता है
पर बंधन का दुःख सहता है
उठ तरंग जब छू ले मन को
तब तब मन चंचल रहता है
जब तरणी में बैठकर डोले
मन जाने क्या क्या कहता है
जब अपनों से चोट लगे तो
बना खंडहर मन ढहता है
सफल कुसुम जीवन है उसका
सच्चे प्रेमी संग रहता है
5 comments:
विचारों की पंख लिए मन अपने अनुभवों के आधार पर कितनी बड़ी उड़ान भरता हैं और क्या क्या प्राप्त करता हैं, सरलता से बयाँ हुई कविता के लिए बधाई |
man ke saath bahna saral hai lekin man ko apne sath bahana zara mushkil....fir bhi man aapka chaman ki bhanti khila hua hai
aapko kavitaai ka hunar khoob mila hua hai ...badhai !
Sundar abhivyakti hai vicharon ki.
aabhar
बेहतरीन भाव की प्रस्तुति कुसुम जी - बधाई. लीजिये इसी गोत्र-मूल की कुछ त्वरित पंक्तियाँ मेरी ओर से भी-
मन की बातें मन से जानें
तब प्रियतम संग मन बहता है
नहीं मिले मन, कहना मुश्किल
कब जीता है कब मरता है
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
"मन तो प्रतिपल ही बहता है
पर बंधन का दुःख सहता है"
क्या कहूं पर बहुत खूबसूरत पंक्ति है ।
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