भगवान निरीह बनाकर क्यों भेजते


बाल विहार मूक वधिर स्कूल, जमशेदपुर


हमारी बातों को समझने की कोशिश करते हुए बाल विहार के मासूम बच्चे


बाल विहार के बच्चों को लिखकर अपनी बातें बताती हुई सरिता 

आज बहुत दिनों के बाद  बाल विहार गई थी. दरअसल अमेरिका से आने के बाद गई ही नहीं थी. मूक वधिर के इस स्कूल में जाती तो हूँ उनके साथ समय बिताने और उन्हें खुशियाँ देने पर मुझे जो खुशियाँ मिलती है वह कहीं उनकी खुशियों से अधिक है. उनके साथ कब समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता. 

इस बार जबसे आई हूँ तबियत पूरी तरह ठीक नहीं है इसलिए मेरा कहीं भी जाना आना कम हो रहा है या यों कह सकती हूँ नहीं के बराबर . आज अचानक बाल विहार से एक बच्चे ने किसी से फ़ोन करवाया तो अपने आप को नहीं रोक पाई और अपनी एक सहेली के साथ वहाँ पहुँच गई. 

बच्चों की ख़ुशी देखने लायक थी. उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी हम अचानक पहुँच जाएँगे. हमें देख सभी अपनी अपनी जगह छोड़ हॉल में जो उनकी कक्षा भी है, पहुँच गए. ख़ुशी से कई कई बार नमस्ते करते, देखते देखते कुछ ही पलों में पूरी कक्षा में कुर्सियों को करीने से रख सारे बच्चे अपनी अपनी जगह बैठ गए . ऐसी अनुशासन तो मैंने अच्छे अच्छे स्कूलों में भी नहीं देखी, जो इस बाल विहार के बच्चों में है. 

हमने करीब एक डेढ़ घंटे उनके साथ बिताई, पर उनके चहरे की ख़ुशी देख प्रतीत होता था मानो उन्हें दुनिया की सारी खुशियाँ मिल गई हो और उनको खुश देख हमें संतुष्टि. हम जब चलने लगे एक बच्चे ने हाथ पकड़ रुकने को कहा और जल्दी से बोर्ड पर कुछ लिखने लगा, मैं मुड़ी तो बोर्ड पर वह कुछ लिख रहा था. उसने लिखी थी "Kusum mam tommorow". मैं समझ गई , वह पूछ रहा था मैं कल आऊँगी या नहीं. मैंने उसे कहा हाँ आऊंगी. वह समझ गया और सभी ताली बजा बजाकर उछलने लगे. चलते समय सभी हमारी गाड़ी तक आ हाथ हिला हिलाकर फिर से आने का इशारा कर रहे थे. 

रास्ते भर मैं सोचती रही भगवान जन्म देते हैं तो उन्हें निरीह बनाकर क्यों भेजते. अपनी बातों को समझाने के लिए ही उन्हें कितनी मेहनत करनी होती है. इतने मासूम बच्चे और अपने मन की सारी बातें सबसे नहीं कर पाते, लिखकर और इशारों से ही समझाना पड़ता है उन्हें . खैर, आज फिर जाने की तीव्र इच्छा है ............  




7 comments:

मनोज कुमार said...

इस भावपूरित प्रस्तुति से मन भर आया। आभार आपका। बहुत अच्छा काम कर रहीं हैं आप। साधुवाद।

अरुण चन्द्र रॉय said...

अच्छा लगा पढ़ कर... और आपके प्रयास को जान कर...

vandana gupta said...

बेहद उम्दा काम कर रही हैं आप और तभी जीवन सार्थक है अगर किसी के चेहरे पर कुछ पल के लिये भी मुस्कान लायी जा सके……………इससे नेक काम और क्या होगा।

कविता रावत said...

.......मेरी बड़ी बहिन भी न बोल पाती है न समझ पाती है ... लेकिन जब कभी घर जाती हूँ सबसे ज्यादा खुसी उसे होती है ... माँ बहुत चिंतित रहती है .... आपके पोस्ट पढ़ दीदी की याद आ गयी .......कभी अपने ब्लॉग पर लिखूंगी विस्तार से ........
सार्थक संवेदनशील प्रस्तुति के लिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपके इस प्रयास के लिए साधुवाद ....ऐसे लोगों के साथ कुछ पल बीता कर जो आनन्द मिलता है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता ...

vandana gupta said...

इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
आकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

खबरों की दुनियाँ said...

इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न… अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"