हाले दिल बयां करूँ अब मैं कैसे

" बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे"

बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे 
खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे 

बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको 
तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे 

चिलमन से देखी बहारों को जाते 
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे 

हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं   
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे 

- कुसुम ठाकुर -

शब्दार्थ :
खलिश - कसक, चिंता, आशंका,पीड़ा, 
इल्म - ज्ञान, जानकारी 
चिलमन - चिक, बांस के फट्टियों का पर्दा 

21 comments:

M VERMA said...

चिलमन से देखी बहारों को जाते
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
यही तो कश्मकश है जो हमें जिन्दगी से रूबरू करवाती है

Anamikaghatak said...

बहुत सुन्दर रचना .......

संजय भास्‍कर said...

चिलमन से देखी बहारों को जाते हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

मनोज कुमार said...

मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती बेहतरीन ग़ज़ल।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चिलमन से देखी बहारों को जाते
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे

हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे

बहुत खूबसूरती से एहसासों को पिरोया है ..

शरद कोकास said...

चिलमन से देखा सही कर लें ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको
तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे

हर पंक्ति मन को छूने वाली ....भावपूर्ण है..... बहुत सुन्दर रचना .......

Kunwar Kusumesh said...

बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे
खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे
मत्ला बहुत अच्छा है

Anupama Tripathi said...

दिल की बेबसी को बयां करती खूबसूरत ग़ज़ल .

ZEAL said...

भावपूर्ण रचना !

अनुपमा पाठक said...

चिलमन से देखी बहारों को जाते
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
बहुत सुन्दर!

Arvind Mishra said...

यह काव्य यात्रा बढियां है ,शुभकामनाएं !

Dorothy said...

गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

Shalini kaushik said...

bhavon ko apne bheetar sanjoye umda rachna !badhai swikaar kare .kabhi mere blog par bhi aaye .

वाणी गीत said...

चिलमन से देखी बहारों को जाते
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे

सुन्दर अभिव्यक्ति !

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

Kusum Thakur said...

आप सभी का आभार !

Pankaj Trivedi said...

हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे

vaise to sabhi sher badhiya hai... apani bhavanao ko urdu shabdo ke sath pesh kiya - arth diye.. kabil-e-tarif...

Pankaj Trivedi said...

हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे

vaise to sabhi sher badhiya hai... apani bhavanao ko urdu shabdo ke sath pesh kiya - arth diye.. kabil-e-tarif...

निर्मला कपिला said...

हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे
बहुत खूब। दिल की कशमकश और खुद से संवाद। सुन्दर। बधाई।

NSHAH said...

bahut achha likha hai