मेरी तीसरी कविता

"तुमसे न होगा "

तुम तो कहते थे हरदम ,
न होगा तुमसे कुछ भी ।
न जाने क्या भेद छुपा था,
इन सब बातों के पीछे।
या तो तुम मुझको यह कह कर,
मुझको मेरा काम सुझाते।
या तो फिर सच्चाई तुम,
मुझसे ही सुनना चाहते।
मैं तो हँसकर टाल ही जाती,
तुम जब जब भी यह कहते।
आज जब कुछ कहना चाहूँ,
तुमको ढूंढ कहीं न पाऊं ।
गर तुम होते पास हमारे,
कह -कह न मैं थकती।
या फिर मैं तुम्हारे रचना की,
एक पात्र बन जाती॥

-कुसुम ठाकुर-
टैगोर एकाडमी
समय-१२:30





2 comments:

Rajat Narula said...

बहुत भावपूर्ण रचना है!

श्यामल सुमन said...

भाग्यवान रचना कुसुम जहाँ आप हों पात्र.
वहां सुमन पढता रहे बना रहेगा छात्र..
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com