मैं न उसमे बही सही


"मैं  उसमे बही सही"

मैंने मन की कही सही 
जो सोचा वह सही-सही 

भूली बिसरी यादें फिर भी 
आज कहूँ न रही सही 

 कितना भी दिल को समझाऊँ  
आँख हुआ नम यही सही 

वह रूठा न जाने कब से 
प्यार अलग सा वही सही 

रंग अजब दुनिया की देखी 
मैं न उसमे बही सही 

- कुसुम ठाकुर- 


15 comments:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

sunder prastuti..sadar badhayee

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भावनाओं का बहता रेला ..यही सही

Gyan Darpan said...

बढ़िया अभिव्यक्ति

Gyan Darpan

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।">चर्चा

udaya veer singh said...

सुन्दर प्रयास ......किया तो सही ...... शुभकामनाएं जी

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत बढ़िया कृति....
सादर बधाई...

रचना दीक्षित said...

प्यार का सुंदर अहसास.

बढ़िया प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें.

अनुपमा पाठक said...

आँखें नम हो ही जाती हैं...
सुन्दर रचना!

मन के - मनके said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

Anonymous said...

प्यार की अलग पहचान.... सजी हुई अभिव्यक्ति

नीरज गोस्वामी said...

बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें

नीरज

Pallavi saxena said...

रंग अजब देखे दुनिया के मैं न उसमें बही सही
वाह बहुत सुंदर भाव .....

Udan Tashtari said...

भावमयी अभिव्यक्ति!!

Unknown said...

आपका विचार समाज की भावना की अभिव्यक्ति है. हम आपको आपने National News Portal पर लिखने के लिये आमंत्रित करते हैं.
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