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"मैं न उसमे बही सही"
मैंने मन की कही सही
जो सोचा वह सही-सही
भूली बिसरी यादें फिर भी
आज कहूँ न रही सही
कितना भी दिल को समझाऊँ
आँख हुआ नम यही सही
वह रूठा न जाने कब से
प्यार अलग सा वही सही
रंग अजब दुनिया की देखी
मैं न उसमे बही सही
- कुसुम ठाकुर-
15 comments:
बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
sunder prastuti..sadar badhayee
भावनाओं का बहता रेला ..यही सही
बढ़िया अभिव्यक्ति
Gyan Darpan
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।">चर्चा
सुन्दर प्रयास ......किया तो सही ...... शुभकामनाएं जी
बहुत बढ़िया कृति....
सादर बधाई...
प्यार का सुंदर अहसास.
बढ़िया प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें.
आँखें नम हो ही जाती हैं...
सुन्दर रचना!
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
प्यार की अलग पहचान.... सजी हुई अभिव्यक्ति
बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
रंग अजब देखे दुनिया के मैं न उसमें बही सही
वाह बहुत सुंदर भाव .....
भावमयी अभिव्यक्ति!!
आपका विचार समाज की भावना की अभिव्यक्ति है. हम आपको आपने National News Portal पर लिखने के लिये आमंत्रित करते हैं.
Email us : editor@spiritofjournalism.com,
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